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परिशिष्ट (१)
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संगम
संगम देवताने जो महावीरस्वामीको परिषह दिये, उनका वर्णन हेमचन्द्रके त्रिषष्टिशलाकापुरुषंचरित (१० वाँ पर्व) आदि ग्रन्थोंमें आता है। सुंदरदास
सुंदरदास जातिके बनिये थे । इनका जन्म सं० १६५३ में जयपुर राज्यमें हुआ था। एक समय दादूदयाल इनके गाँवमें पधारे । ये उनके शिष्य हो गये और उनकी साथ रहने लगे। सुंदरदासजी उन्नीस बरस काशीमें रहकर संस्कृत, वेदान्तदर्शन, पुराण आदिका अध्ययन करते रहे । सुंदरदासजीका स्वभाव बहुत मधुर और आकर्षक था। बालकोंसे ये बहुत प्रेम करते थे। ये बाल-ब्रह्मचारी थे । स्वच्छताको ये बहुत पसंद करते थे । सुंदरदासजीकी कविताका हिंदी साहित्यमें बहुत.सन्मान है । इनकी कवितासे प्रकट होता है कि ये अच्छे ज्ञानी और काव्य-कलाके मर्मज्ञ थे। इन्होंने वेदान्तपर अच्छी कविता की है। इन्होंने सुंदरविलास, सुंदर अष्टक, ज्ञानविलास आदि सब मिलाकर ४० ग्रंथोंकी रचना की है । सुंदरदासजीने सं० १७४६ में सांगानेरमें शरीर-त्याग किया। राचजन्द्रजीने सुंदरदासजीके पद्य उद्धृत किये हैं। राजचन्द्रजी उनके विषयमें लिखते हैं" श्रीकबीर सुंदरदास आदि साधुजन आत्मार्थी गिने जाने योग्य हैं; और शुभेच्छासे ऊपरकी भूमिकाओंमें उनकी स्थिति होना संभव है " । सुंदरी (मोक्षमाला पाठ १७). सुभूम ( मोक्षमाला पाठ २५). सूयगडांग ( आगमग्रंथ )-इसका राजचन्द्रजीने कई जगह उल्लेख किया है। हरिभद्र
हरिभद्रसूरि श्वेताम्बर सम्प्रदायमें उच्च कोटिके एक मार्मिक विद्वान् हो गये हैं। इन्होंने संस्कृत और प्राकृतमें अनेक उत्तमोत्तम दार्शनिक और धार्मिक ग्रंथोंकी रचना की है। इन्होंने षड्दर्शनसमुच्चयमें छहों दर्शनोंकी निष्पक्ष समालोचना की है। हरिभद्रसूरिका साहित्य बहुत विपुल है। इन्होंने प्रायः हरेक विषयपर कुछ न कुछ लिखा ही है । अनेकांतवादप्रवेश, अनेकांतजयपताका, अष्टकप्रकरण, शास्त्रवार्तासमुच्चय, षड्दर्शनसमुच्चय, धर्मबिन्दु, धर्मसंग्रहणी, योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय, योगप्रदीप, लोकतत्त्वनिर्णय क्षेत्रसमासटीका, समराइच्चकहा आदि इनके मुख्य ग्रंथ हैं। हरिभद्रसूरि बहुत सरल और सौम्यवृत्तिके विद्वान् थे । वे जैनेतर ऋषियोंका भी बहुत सन्मानके साथ स्मरण करते हैं। हरिभद्र नामके जैन परम्परामें अनेक विद्वान् हो गये हैं। प्रस्तुत याकिनीसूनु हरिभद्रका समय ईसाकी नौंवी शताब्दि माना जाता है । राजचन्द्रजीने अष्टक, धर्मबिन्दु, धर्मसंग्रहणी, योगप्रदीप, योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय, और षड्दर्शनसमुच्चयका प्रस्तुत प्रथमें उल्लेख किया है । योगदृष्टिसमुच्चयका अनुसरण करके यशोविजयजीने योगदृष्टिनी सज्झाय गुजरातीमें लिखी है। राजचन्द्रजीने योगदृष्टिसमुच्चयका और षड्दर्शनसमुच्चयका फिरसे भाषांतर करनेका किसी मुमुक्षुको अनुरोध किया है।
हेमचन्द्र श्वेताम्बर परम्परामें महान् प्रतिभाशाली आचार्य हो गये हैं। इनका जन्म धन्धका प्राममें मोढ़ वणिक् जातिमें सन् १०७८ में हुआ था। उनके गुरुका नाम देवचन्द्रसूरि था।