Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 929
________________ परिशिष्ट (१) थे। वे सदा भगवद्भक्ति और भगवद्विचारमें ही लीन रहते थे। गोपेश्वरजीने इस ग्रन्थकी टीका की है। यह प्रन्थ पुष्टिमार्ग ग्रंथावली में सन् १९०७ में बड़ोदासे प्रकाशित हुआ है। शीलांकसरि___शीलांकसूरि श्वेताम्बर सम्प्रदायमें एक अच्छे प्रौढ़ विद्वान् हो गये हैं । इन्होंने सं०९२५ में दश हजार श्लोकप्रमाण प्राकृतमें महापुरुषचरिय नामका ग्रंथ बनाया है । शीलांकसूरिने आचारांग और सूत्रकृतांग सूत्रोंके ऊपर संस्कृतवृत्तिकी रचना की है । इसके अतिरिक्त, कहा जाता है कि शीलांकसूरिने बाकीके नौ सूत्रोंपर भी टीकायें लिखी थीं। ये विच्छिन्न हो गई, और बादमें अभयदेवसूरिने इन सूत्रोंकी नवीन टीकायें लिखीं । शीलांक आचार्यने और भी अनेक रचनायें की हैं। श्वेताम्बर विद्वानोंने शीलांक आचार्यका गुर्जरराजके गुरु और चारों विद्याओंका सर्जनकार उत्कृष्ट कवि कहकर उल्लेख किया है। शुकदेव शुकदेवजी वेदव्यासजीके पुत्र थे। ये बाल्यावस्थामें ही संन्यासी हो गये थे। इन्होंने वेद-वेदांग, इतिहास, योग आदिका खूब अभ्यास किया था। इन्होंने राजा जनकके पास जाकर मोक्षप्राप्तिकी साधना सीखी, और बादमें जाकर हिमालय पर्वतपर कठोर तपस्या की। शुकदेवजी बहुत बड़े ज्ञानयोगी माने जाते हैं। इन्होंने राजा परीक्षितको शापकालमें भागवतकी कथा सुनाकर उपदेश दिया था। शुकदेवजी जीवन्मुक्त और चिरजीवी महापुरुष माने जाते हैं। श्रीपालरास ( देखो विनयविजय और यशोविजय ). श्रेणिक श्रेणिक राजा जैन साहित्यमें बहुत सुप्रसिद्ध हैं । इन्होंने जैनधर्मकी प्रभावनाके लिये बहुत कुछ किया है। इनके अनेक चरित आदि दिगम्बर और श्वेताम्बर विद्वानोंने लिखे हैं । एक श्रेणिकचरित नामका महाकाव्य श्वेताम्बर विद्वान् जिनप्रभसूरिने लिखा है । इसका गुजराती अनुवाद जैनधर्म विद्याप्रसारक वर्ग पालिताणासे सन् १९०५ में प्रकाशित हुआ है। पंडदर्शनसमुच्चय ( देखो हरिभद्रसूरि ). सन्मतितर्क ( देखो सिद्धसेन ). सनत्कुमार (देखो मोक्षमाला पाठ ७०-७१). समयसार ( देखो कुन्दकुन्द और बनारसीदास ). समवायांग ( आगमग्रंथ )-इसका राजचन्द्रजीने प्रस्तुत ग्रंथमें उल्लेख किया है । समन्तभद्र स्वामी समंतभद्रका नाम दिगम्बर सम्प्रदायमें बहुत महत्त्वका है । जैसे सिद्धसेन श्वेताम्बर सम्प्रदायमें, वैसे ही समंतभद्र दिगम्बर सम्प्रदायमें आदिस्तुतिकार गिने जाते हैं । समंतभद्रने आप्तमीमांसा ( देवागमस्तोत्र ), रत्नकरण्डश्रावकाचार, बृहत्स्वयंभूस्तोत्र आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंकी रचना की है। सिद्धसेन और समंतभद्रकी कृतियोंमें कुछ श्लोक समानरूपसे भी पाये जाते हैं। प्रायः समंतभद्र सिद्धसेनके समकालीन माने जाते हैं। समंतभद्रसूरि अपने समयके एक प्रकाण्ड तार्किक थे । इन्होंने . .

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