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श्रीमद् राजचन्द्र
बुद्ध दोनों समकालीन थे। दोनों होने अपने धर्मका बिहार प्रान्तसे प्रचार आरंभ किया । बुद्ध भगवान्के देशी विदेशी भाषाओंमें अनेक जीवनचरित्र लिखे गये हैं।
बृहत्कल्प छह छेदसूत्रोंमें एक सूत्र माना जाता है । इसके कर्ता भद्रबाहुस्वामी हैं । बृहत्कल्पपर अनेक टीका टिप्पणियाँ हैं । इन छह छेदसूत्रोंमें साधु साध्वियोंके आचार क्रिया आदिके सामान्य नियम-मार्गोंके प्रतिपादनके साथ साथ, द्रव्य क्षेत्र काल भाव उत्सर्ग अपवाद आदि मार्गीका भी समयानुसार वर्णन है। इसलिये ये छह छैदसूत्र अपवादमार्गके सूत्र माने जाते हैं । बृहत्कल्पमें छह उद्देशक हैं । इस सूत्रों साधु साध्वियोंके आचारका वर्णन है । इसमें जो पदार्थ कर्मके हेतु और संयमके बाधक हैं, उनका निषेध करते हुए, संयमके साधक स्थान, वस्त्र, पात्र आदिका वर्णन किया है। इसमें प्रायश्चित्त आदिका भी वर्णन है। ब्रह्मदत्त
ब्रह्मदत्त चक्रवती था । एक समयकी बात है कि एक ब्राह्मणने आकर ब्रह्मदत्त चक्रवतीसे कहा कि हे चक्रवर्ती ! जो भोजन तू स्वयं खाता है उसे मुझे भी खिला। ब्रह्मदत्तने ब्राह्मणको उत्तर दिया कि मेरा भोजन बहुत गरिष्ठ और उन्मादकारी है । परन्तु ब्राह्मणने जब चक्रवत्तीको कृपण आदि शब्दोंसे धिक्कारा, तो ब्रह्मदत्तने ब्राह्मणको कुटुंबसहित अपना भोजन खिलाया। भोजन करनेके पश्चात् रात्रिमें ब्राह्मण और उसके कुटुंबको महा उन्माद हुआ, और वह ब्राह्मण अपने पुत्रसहित माता बहन आदि सबके साथ पशुकी तरह रमण करने लगा। जब सुबह हुई तो ब्राह्मण और उसके गृहजनोंको बहु लज्जा मालूम हुई। ब्राह्मणको ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीके ऊपर बहुत क्रोध आया और वह क्रोधसे घरसे निकल पड़ा। कुछ दूरपर ब्राह्मणने एक गड़रियेको पीपलके पत्तोंपर कंकरें फेंककर पत्तोंको फाड़ते हुए देखा । ब्राह्मणने गड़रियेसे कहा कि जो पुरुष सिरपर श्वेत छत्र और चमर धारण करके गजेन्द्रपर बैठकर यहाँसे निकले, तू उसकी दोनों आँखोंको कंकरोंसे फोड़ डाल । गड़रियेने दिवालकी ओटमें खड़े होकर हाथीपर बैठकर जाते हुए ब्रह्मदत्तकी दोनों आँखें फोड़ दीं। बादमें चक्रवर्तीको मालूम हुआ कि उसी ब्राह्मणने इस दुष्कृत्यको कराया है। ब्रह्मदत्तको ब्राह्मण जातिके ऊपर बहुत क्रोध आया। उसने उस ब्राह्मणको उसके पुत्र, बंधु और मित्रोंसहित मरवा डाला। क्रोधान्ध ब्रह्मदत्त चक्रवतीने अपने मंत्रीको सब ब्राह्मणोंको मारकर उनके नेत्रोंसे विशाल थाल भरकर अपने सामने लानेकी आज्ञा दी। मंत्रीने श्लेष्मातक फलोंसे थाल भरकर राजाके सामने रक्खी । ब्रह्मदत्त उस थालमें रक्खे हुए फलोंको नेत्र समझकर उन्हें बार बार हाथसे स्पर्श करता और बहुत हर्षित हुआ करता था। अन्तमें हिंसानुबन्धी परिणामोंसे मरकर वह सातवें नरकमें गया । यह कथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित आदि कथाग्रंथोंमें आती है। भगवतीसूत्र (आगमग्रन्थ)-इसका राजचन्द्रजीने अनेक स्थानोंपर उल्लेख किया है। भगवतीआराधना
__ यह ग्रन्थ दिगम्बर सम्प्रदायमें बहुत प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। पं० नाथूरामजी प्रेमीका कहना है कि इसके ग्रन्थकर्ताका असली नाम आयीशव या शिवकोटि था । बहुतसे लोग इनको समंतभद्र आचार्यका शिष्य मानते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं मालूम होता। यह ग्रन्थ प्रधानतया