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योगशास्त्र (देखो हेमचन्द्र ). रहनेमि - राजीमती
श्रीमद् राजचन्द्र
रहनेमि अथवा अरिष्टनेमि समुद्रविजय राजाके पुत्र थे । उनका विवाह उग्रसेनकी पुत्री राजीमतीसे होना निश्चित हुआ था । रहनेमिने जब बाजे गाजेके साथ अपने श्वसुर - गृहको प्रस्थान किया, तो रास्तेमें जाते हुए उन्होंने बहुतसे बँधे हुए पशु पक्षियोंका आक्रन्दन सुना । सारथीसे पूछनेपर उन्हें मालूम हुआ कि वे पशु बारातके अतिथियोंके लिये वध करनेके लिये एकत्रित किये गये हैं । इसपर नेमिनाथको बहुत वैराग्य हो आया, और उन्होंने उसी समय दीक्षा धारण करनेका निश्चय किया । उधर जब राजीमतीके पास नेमिनाथकी दीक्षाका समाचार पहुँचा तो वह अत्यंत व्याकुल हुई, और उसने भी नेमिनाथकी अनुगामिनी हो जानेका निश्चय किया । दोनों दीक्षा धारण कर गिरनार पर्वतपर तपश्चरण करने लगे । एक बारकी बात है, नेमिनाथने राजीमतीको नग्न अवस्थामें देखा, और उनका मन डाँवाडोल हो गया। इस समय राजीमतीने अत्यंत मार्मिक बोध देकर नेमिनाथको फिरसे संयममें दृढ़ किया । यह कथा उत्तराध्ययनके २२ वें रथनेमीय अध्ययनमें आती है । " कोई राजीमती जैसा समय प्राप्त होओ। ” – ' श्रमिद् राजचंद्र ' पृ. १२६
रामदास
स्वामी समर्थ रामदासका जन्म औरंगाबाद जिलेमें सन् १६०८ में हुआ था । समर्थ रामदास पहिले से ही चंचल और तीव्रबुद्धि थे । जब ये बारह वर्ष के हुए तब इनके विवाहकी बातचीत होने लगी । इस खबरको सुनकर रामदास भाग गये और बहुत दिनोंतक छिपे रहे । छोटी अवस्था में ही रामदासजीने कठोर तपस्यायें कीं । बादमें ये देशाटन के लिये निकले और काशी, प्रयाग, बदरीनाथ, रामेश्वर आदि तीर्थस्थानोंकी यात्रा की । शिवाजी रामदासको अपना परम गुरु मानते थे, और इनके उपदेश और प्रेरणासे ही सब काम करते थे । सन् १६८० में जब शिवाजीकी मृत्यु हुई तो रामदासजीको बहुत दुःख हुआ । श्रीसमर्थ केवल बहुत बड़े विद्वान् और महात्मा ही न थे, वरन् वे राजनीतिज्ञ, कवि और अच्छे अनुभवी भी थे । उनको विविध विषयोंका बहुत अच्छा ज्ञान था । उन्होंने बहुतसे ग्रंथ बनाये हैं । उनमें दासबोध मुख्य है । यह ग्रन्थ मुख्यतः अध्यात्मसंबंधी है, पर इसमें व्यावहारिक ' बातोंका भी बहुत सुन्दर दिग्दर्शन कराया गया है । इसमें विश्वभावनाके ऊपर खूब भार दिया है । मूल ग्रन्थ मराठीमें है । इसके हिन्दी गुजराती अनुवाद भी हो गये हैं ।
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रामानुज --
रामानुज आचार्य श्रीसम्प्रदायके आचार्य माने जाते हैं । इनका जन्म ईसवी सन् १०१७ में कर्णाटक में एक ब्राह्मणके घर हुआ था । रामानुजने १६ वर्षकी अवस्थामें ही चारों वेद कण्ठ कर लिये थे । इस समय रामानुजका विवाह कर दिया गया । रामानुजने व्याकरण, न्याय, वेदांत आदि विद्याओंमें निपुणता प्राप्त की थी। इनकी स्त्रीका स्वभाव झगड़ालू था, इसलिये इन्होंने उसे उसके पिता के घर पहुँचाकर स्वयं संन्यास धारण कर लिया । रामानुज स्वामीने बहुत दूर दूरतक देशोंकी यात्रा की थी । इन्होंने भारतके प्रधान तीर्थस्थानोंमें अपने मठ स्थापित किये, और भक्तिमार्गका प्रचार किया । रामानुज विशिष्टाद्वैत के संस्थापक माने जाते हैं । इन्होंने वेदान्तसूत्रोंपर • श्रीभाष्य, वेदन्तं प्रदीप, वेदान्त
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