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श्रीमद् राजचन्द्र
*मुक्तानन्द.. ये काठियावाडके रहनेवाले साधु थे। मुक्तानन्दजी सं० १८६४ में मौजूद थे। इन्होंने उद्धवगीता, धर्माख्यान, धर्मामृत तथा बहुतसे पद वगैरहकी रचना की है। राजचन्द्रजीने उद्धवगीताका एक पद उद्धृत किया है। मृगापुत्र ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, भावनाबोध पृ. ११२) मोहमुद्र
मोहमुद्गर स्वामी शंकराचार्यका बनाया हुआ है । यह वैराग्यका अत्युत्तम ग्रन्थ है। इसमें मोहके स्वरूप और आत्मसाधनके बहुतसे उत्तम भेद बताये हैं । यह ग्रंथ वेदधर्मसभा बम्बईकी ओरसे गुजराती टीकासहित सन् १८९८ में प्रकाशित हुआ है । राजचन्द्रजीने इस ग्रंथमेंसे श्लोकका एक चरण उद्धृत किया है । इसका प्रथम श्लोक निम्न प्रकारसे है:
मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु तनुबुद्धे मनसि वितृष्णां ।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तं वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ -हे मूढ़ ! धनप्राप्तिकी तृष्णाको छोड़ । हे कम बुद्धिवाले ! मनको तृष्णारहित कर । तथा जो धन अपने कर्मानुसार मिले, उससे चित्तको प्रसन्न रख । मोक्षमार्गप्रकाश
मोक्षमार्गप्रकाशके रचयिता टोडरमलजी हैं। पं० टोडरमलजी आधुनिक कालके दिगम्बर विद्वानोंमें बहुत अच्छे विद्वान् हो गये हैं । इनका जन्म संवत् १९७३ के लगभग जयपुरमें हुआ था। पं० टोडरमलजी जैनसिद्धांतके एक बहुत मार्मिक पंडित गिने जाते हैं । इन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्तीके प्रसिद्ध ग्रन्थ गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार और त्रिलोकसारपर विस्तृत हिन्दी वचनिका लिखी है । इसके अतिरिक्त इन्होंने आत्मानुशासन पुरुषार्थसिद्धिउपाय आदि ग्रंथोंपर भी विवेचन किया है । मोक्षमार्गप्रकाश टोडरमलजीका स्वतंत्र ग्रंथ है । यह अधूरा है। इसका शेषार्ध भाग ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने लिखकर पूर्ण किया है । इस ग्रंथमें टोडरमलजीने जैनधर्मकी प्राचीनता, अन्य मतोंका खंडन, मोक्षमार्गका स्वरूप आदि विषयोंका बहुत सरल भाषामें वर्णन किया है। पं० टोडरमलजी दिगम्बर जैन विद्वानोंमें ऋषितुल्य समझे जाते हैं। टोडरमलजी १५-१६ वर्षकी अवस्थासे ही ग्रंथ-रचना करने लगे थे। पं० टोडरमलजीने वेताम्बरोंद्वारा मान्य वर्तमान जिनागमका निषेध किया है । इस विषयमें राजचन्द्रजी लिखते हैं-" मोक्षमार्गप्रकाशमें खेताम्बर सम्प्रदायद्वारा मान्य वर्तमान जिनागमका जो निषेध किया है, वह निषेध योग्य नहीं । यद्यपि वर्तमान आगममें अमुक स्थल अधिक संदेहास्पद हैं, परन्तु सत्पुरुषकी दृष्टिसे देखनेपर उसका निराकरण हो जाता है। इसलिये उपशम-दृष्टिसे उन आगमोंके अवलोकन करनेमें संशय करना उचित नहीं।" मोक्षमाला (देखो प्रस्तुत ग्रंथ पृ. १०-९६). यशोविजय। यशोविजय श्वेताम्बर परम्परामें अपने समयके एक महान् प्रतिभाशाली प्रखर विद्वान हो गये हैं। इनकी रचनायें संस्कृत, प्राकृत, गुजराती और हिन्दी चारों भाषाशोंमें मिलती हैं। तार्किकशिरोमणि