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परिशिष्ट (१)
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1. मुनिधर्मका ग्रन्थ है, और इसकी अनेक गाथायें श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें भी मिलती हैं । इस ग्रन्थके ऊपर चार दिगम्बर विद्वानोंकी संस्कृत टीकायें भी हैं । अभीतक इसके ऊपर कोई वेताम्बर विद्वान्की टीका देखने में नहीं आई। पं० सदासुखजीने जो श्वेताम्बर टीकाका उल्लेख किया है, सो उन्होंने अपराजितसूरिकी दिगम्बर टीकाको ही श्वेताम्बर टीका समझकर उल्लेख किया है। मालूम होता है कि सदासुखजीके इस कथनके ऊपरसे ही राजचन्द्रजीने भी भगवती आराधनापर शेताम्बर विद्वान्की टीका पाये जानेका उल्लेख किया है । इस ग्रन्थके कर्त्ताके समय के विषयमें कुछ निश्चित नहीं है, फिर भी यह ग्रन्थ बहुत प्राचीन समझा जाता है ।
भरत (देखो प्रस्तुत ग्रन्थ, मोक्षमाला पाठ १७; तथा भावनाबोध पृ. १०८ - १११ ).
भर्तृहरि -
ये उज्जैनके राजा विक्रमादित्य के सौतेले भाई थे । भर्तृहरिको अपनी रानीकी दुश्चरित्रता देखकर वैराग्य हो गया । भर्तृहरि महान् योगी माने जाते हैं । इन्होंने शृंगार, नीति और वैराग्य इन तीन शतकोंकी रचना की है। इनका फ्रेंच, लेटिन, अंग्रेजी और जर्मन भाषाओंमें भी अनुवाद हो चुका है। इन शतकों में वैराग्यशतक बहुत सुन्दर है । वैराग्यशतक गुजराती और हिन्दी पद्यानुवादसहित सन् १९०७ में अहमदाबादसे प्रकाशित हुआ है । भर्तृहरिके वैराग्यशतकके अतिरिक्त जैन विद्वान् पद्मानन्दकवि और धनराज ( धनद) ने भी वैराग्यशतक नामक ग्रंथ लिखे हैं । पद्मानन्दक़विका वैराग्यशतक काव्यमाला सप्तम गुच्छकमें प्रकाशित हुआ है। मालूम होता है राजचन्द्रजीने भर्तृहरिके वैराग्यशतकका ही अवलोकन किया था ।
भागवत
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भागवतका हिन्दु समाजमें अत्यन्त आदर है । आजकल भी जगह जगह भागवतकी कथाओंका वाचन होता है । श्रीमद्भागवतको पुराण, वेद और उपनिषदोंका सार कहा जाता है । इसमें बड़े बड़े गूढ विषयोंको बहुत सरलता से रक्खा गया है । इसमें वैराग्यके वर्णनमें भी भगवद्भक्तिको ही मुख्य मानकर उसकी पुष्टि की है । इसमें स्थान स्थानपर परब्रह्मका प्रतिपादन किया गया है । भागवतके 'गुजराती हिन्दी आदि अनुवाद हो गये हैं । भागवतके कर्त्ता व्यासजी माने जाते है । इसमें बारह स्कंध हैं। भागवतमें कृष्ण और ब्रजगोपियोंका विस्तृत वर्णन है। इसका राजचन्द्रजीने खूब वाचन किया था । भावनाबोध (देखो प्रस्तुत ग्रंथ पृ. ९१ - १२० ). भावार्थप्रकाश-
यह ग्रन्थ किसका बनाया हुआ है, किस भाषाका है इत्यादि बातोंका कुछ पता नहीं लग सका । इस ग्रन्थके विषयमें राजचन्द्रजीने लिखा है " उसमें सम्प्रदायके विवादका कुछ कुछ समाधान हो सके, ऐसी रचना की है; परन्तु तारतम्यसे वह वास्तविक ज्ञानवानकी रचना नहीं, ऐसा मुझे लगता है । भोजा
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भोजा भगतका जन्म काठियावाड़ में जेतपुरके पास कुनबी जातिमें सन् १७८५ में हुआ था । भोजा भगतके चाबखा गुजरातीमें बहुत प्रसिद्ध हैं। भोजा भगत काठियावाड़ी थे, इसलिये उनकी भाषा गुजरातीसे कुछ भिन्न पड़ती है । उनकी काव्यसंबंधी कृतियाँ भिन्न भिन्न प्रकारकी हैं। प्रायः उनकी