Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 917
________________ परिशिष्ट (१) इन्होंने गोम्मटसार आदिका अवलोकन किया। उपाध्याय यशोविजयजीने अध्यात्ममतखंडनमें तथा उपाध्याय मेघविजयजीने युक्तिप्रबोधनाटकमें बनारसीदासजीके मतको अध्यात्ममत कहकर इनके मतका खंडन किया है । बनारसीदासने अर्धकथानकमें ६७३ दोहोंमें अपनी आत्मकथा लिखी है । इनका समयसारनाटक हिन्दी साहित्यका एक अद्वितीय काव्यग्रन्थ है । समयसारनाटकके अनेक पद्योंको राजचंद्रजीने जगह जगह उद्धृत किया है । राजचंद्रजी बनारसीदासजीको सम्यग्दृष्टि मानते थे। वे बनारसीदासजीके संबंधमें लिखते हैं-" उनकी समयसार ग्रंथकी रचनाके ऊपरसे मालूम होता है कि बनारसीदासको कोई उस प्रकारका संयोग बना होगा । मूल समयसारमें बीजज्ञानके विषयमें इतनी अधिक स्पष्ट बात कही हुई नहीं मालूम होती, और बनारसीदासने तो बहुत जगह वस्तुरूपसे और उपमारूपसे यह बात कही है । जिसके ऊपरसे ऐसा मालूम होता है कि बनारसीदासको, साथमें अपनी आत्माके विषयमें जो कुछ अनुभव हुआ है, उन्होंने उसका भी कुछ उस प्रकारसे प्रकाश किया है, जिससे वह बात किसी विचक्षण जीवके अनुभवको आधारभूत हो-उसे विशेष स्थिर करनेवाली हो । ऐसा भी लगता है कि बनारसीदासने लक्षण आदिके भेदसे जीवका विशेष निश्चय किया था, और उस उस लक्षण आदिके सतत मनन होते रहनेसे, उनके अनुभवमें आत्मस्वरूप कुछ तीक्ष्णरूपसे आया है और उनको अव्यक्तरूपसे आत्मद्रव्यका भी लक्ष हुआ है, और उस ' अव्यक्तलक्ष'से उन्होंने उस बीजज्ञानको गाया है । 'अव्यक्तलक्ष'का अर्थ यहाँ यह है कि चित्तवृत्तिके विशेषरूपसे आत्म-विचारमें लगे रहनेसे, बनारसीदासको जिस अंशमें परिणामकी निर्मल धारा प्रकट हुई, उस निर्मल धाराके कारण अपना निजका यही द्रव्य है, ऐसा यद्यपि स्पष्ट जाननेमें नहीं आया, तो भी अस्पष्टरूपसे अर्थात् स्वाभाविकरूपसे भी उनकी आत्मामें वह छाया भासमान हुई, और जिसके कारण यह बात उनके मुखसे निकल सकी है, और आगे जाकर वह बात उन्हें सहज ही एकदम स्पष्ट हो गई हो, प्रायः उनकी ऐसी दशा उस ग्रंथके लिखते समय रही है।" बाइबिल ( देखो ईसामसीह ). बाहुबलि ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, मोक्षमाला पाठ १७). ब्रासी ( देखो मोक्षमाला पाठ १७). गौतमबुद्ध कपिलवस्तुमें राजा शुद्धोदनके घर ईसवी सन्से ५५७ वर्ष पूर्व पैदा हुए थे । इन्होंने संसारको असार जानकर त्याग दिया, और वनमें जाकर कठोर तपस्या करने लगे । कई वर्षतक इन्होंने घोर तप किया, और जब इन्हें 'बोधि' प्राप्त हो गया, तो ये घूम घूम कर अपने मन्तव्योंका प्रचार करने लगे । बुद्धदेव अपने उच्च त्यागके लिये बहुत प्रसिद्ध हैं । इन्होंने मध्यम-मार्ग चलाया था । बुद्धका कथन था कि न तो हमें एकदम विलासप्रिय ही हो जाना चाहिये, और न कठोर तपश्चर्यासे अपने शरीरको ही सुखा डालना चाहिये । बौद्धधर्मके आजकल भी संसारमें सबसे अधिक अनुयायी हैं । बौद्धपंडित नागार्जुन, दिग्नाग, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति आदिने बौद्धधर्मको खब विकसित किया । बौद्धोंके आगमग्रन्थ जिन्हें त्रिपिटक नामसे कहा जाता है, पालि भापामें है। जैनधर्म और बौद्धधर्मकी बहुतसी बातें मिलती जुलती हैं। कुछ बातोंमें अन्तर भी है। महावीर और १.४

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