Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 907
________________ परिशिष्ट (१) संवत् १९०५ तक मौजूद थे । उनकी रचना अनुभवपूर्ण और मार्मिक है । राजचन्द्रजी चिदानन्दजीके संबंधमें लिखते हैं-" उनके जैनमुनि हो जानेके बाद अपनी परम निर्विकल्प दशा हो जानेसे उन्हें जान पड़ा कि वे अब क्रमपूर्वक द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे यम नियमोंका पालन न कर सकेंगे। तत्त्वज्ञानियोंकी मान्यता है कि जिस पदार्थकी प्राप्ति होनेके लिये यम-नियमका क्रमपूर्वक पालन किया जाता है, उस वस्तुकी प्राप्ति होनेके बाद फिर उस श्रेणीसे प्रवृत्ति करना अथवा न करना दोनों समान हैं। जिसको निर्मथ प्रवचनमें अप्रमत्त गुणस्थानवत्ती मुनि माना है, उसमें की सर्वोत्तम जातिक लिये कुछ भी नहीं कहा जा सकता । परन्तु केवल उनके वचनोंका मेरे अनुभव-ज्ञानके कारण परिचय होनेसे ऐसा कहा जा सका है कि वे प्रायः मध्यम अप्रमत्त दशामें थे। फिर उस दशामें यम-नियमका पालन करना गौणतासे आ जाता है । इसलिये अधिक आत्मानंदके लिये उन्होंने यह दशा स्वीकार की । इस समयमें ऐसी दशाको पहुँचे हुए बहुत ही थोडे मनुष्योंका मिलना भी बड़ा कठिन है । इस अवस्थामें अप्रमत्तताविषयक बातकी. असंभावना आसानीसे हो जायगी, ऐसा मानकर उन्होंने अपने जीवनको अनियतपनेसे और गुप्तरूपसे बिताया । यदि वे ऐसी ही दशामें रहे होते तो बहुतसे मनुष्य उनके मुनिपनेकी शिथिलता समझते और ऐसा समझनेसे उनपर ऐसे पुरुषकी उलटी ही छाप पड़ती। ऐसा हार्दिक निर्णय होनेसे उन्होंने इस दशाको स्वीकार की।" चेलातीपुत्र चेलातीपुत्रका जीव पूर्वभवमें यज्ञदेव नामका ब्राह्मण था। वह चारित्रकी जुगुप्साके कारण राजगृहमें धनावह सेठकी चिलाती नामकी दासीके यहाँ पैदा हुआ, और उसका नाम चिलातीपुत्र (चेलातीपुत्र ) पड़ा। चेलातीपुत्रकी पूर्वभवकी स्त्रीने भी धनावह सेठके घर उसकी कन्यारूपसे जन्म लिया। चेलातीपुत्र सेठकी कन्याको बहुत प्यार करता था । एक दिन सेठने चेलातीपुत्रको अपनी लड़कीके साथ कायसे कुचेष्टा करते देख उसे वहाँसे निकाल दिया । वह दासीपुत्र चोरोंकी मंडलीमें जा मिला, और चोरोंका अधिपति बनकर रहने लगा । एक दिन वह अपने साथी चोरोंके साथ धनावह सेठके घर आया । चोर बहुतसा धन और सेठकी कन्याको लेकर चलते नवे । 'सेठ और उसके कर्मचारियोंने चोरोंका पीछा किया । चेलातीपुत्र सेठकी कन्याका सिर काटकर उस सिरको लेकर भाग गया। उसने आगे जाकर एक मुनिको देखा और मुनिसे उपदेश माँगा । मुनिने विचार किया कि ययपि यह जीव पापिष्ठ है फिर भी यह उपदेश तो ले सकता है। यह कहकर मुनिने कहा-" तुझे उपशम, विवेक और संवर करने चाहिये ।" यह सुनकर चेलातीपुत्रको बोध पैदा दुआ, और वह वहीं कायोत्सर्गमें स्थित हो गया । चेलातीपुत्रने बढ़ाई दिन कठोर तप किया और वह मरकर देवलोकमें गया । यह कथा उपदेशमाला आदि जैन कथाग्रंथोंमें आती है। छोटम छोटम ज्ञानी पुरुष थे। ये गुजरातके एक भक्त कवि माने . जाते हैं । इनका जन्म पेटलादके पास सोजित्रा प्रामके नजदीक सं० १८६८ में हुआ था। छोटम बहुत सरल और शान्त प्रकृतिके थे। मान अथवा लोमकी आकांक्षा तो इन्हें थी ही नहीं । इन्होंने लोकप्रसिद्धि में जानेको कभी भी इच्छा

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