Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 909
________________ परिशिष्ट (१) ८१७ विस्तारसे आती है । इसपर जैन आचार्योंने अनेक टीका टिप्पणियाँ लिखी हैं । इस ग्रंथमें इस कालमें मोक्ष न होनेका उल्लेख आता है। जम्बूस्वामी जम्बूस्वामी दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंमें अन्तिम केवली हो गये हैं। महावीर स्वामीके निर्वाणके पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जम्बूस्वामी इन तीन केवलियोंका होना दोनों ही सम्प्रदायोंको मान्य है । इसके बाद ही दोनों सम्प्रदायोंकी परम्परामें भेद दृष्टिगोचर होता है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों विद्वानोंने संस्कृत, गुजराती और हिन्दीमें जम्बूस्वामीके अनेक चरित रास आदि लिखे हैं । श्वेताम्बर विद्वानोंमें हेमचन्द्रसूरि और जयशेखरसूरि, और दिगम्बरोंमें उत्तरपुराणके कर्ता गुणभद्रसूरि और पंडित राजमल्ल आदिका नाम विशेष उल्लेखनीय है। पं० राजमल्लका जम्बूस्वामीचरित अभी हालमें इस लेखकद्वारा संपादित होकर माणिकचन्द जैनग्रन्थमाला बम्बईकी ओरसे प्रकाशित हुआ है। ठाणांग ( आगमग्रन्थ )-इसका राजचन्द्रजीने अनेक स्थलोंपर उल्लेख किया है। डेढ़सौ गायाका स्तवन ( देखो यशोविजय ). तत्त्वार्थसूत्र तत्त्वार्थसूत्रमें जैनधर्मके सिद्धांतोंको सूत्रोंमें लिखा गया है । अपने ढंगकी जैनसाहित्यमें यह प्रथम ही रचना उपलब्ध होती है । इस ग्रंथके कर्ता उमास्वाति हैं, जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंद्वारा पूज्य माने जाते हैं । तत्त्वार्थसूत्रका भी दोनों सम्प्रदायोंमें समान आदर है, और दोनों ही आम्नायोंके विद्वान् इस सारगर्भित ग्रंथकी टीका टिप्पणियाँ लिखनेमें प्रेरित हुए हैं । श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार उमास्वातिने तत्वार्थसूत्रके ऊपर स्वयं भाण्यकी भी रचना की है, जिसे दिगम्बर विद्वान् नहीं मानते । श्वेताम्बरोंके अनुसार उमास्वाति प्रशमरति श्रावकप्रज्ञप्ति आदि ग्रंथोंके भी कर्ता कहे जाते हैं । उमास्वाति वाचकमुख्यके नामसे कहे जाते है । दिगम्बर साहित्यमें इनका नाम उमास्वामि भी आता है, और ये कुन्दकुन्द आचार्यके शिष्य अथवा वंशज माने जाते हैं । इनका समय ईसवी सन् प्रथम शताब्दि माना जाता है । तत्त्वार्थसूत्रके मंगलाचरणका राजचन्द्रजीने विवेचन किया है। थियोसफी थियोसफीधर्मकी मूलप्रवर्तक मैडम ब्लैवेट्स्कीका जन्म सन् १८३१ में अमेरिकामें हुआ था । इनका विवाह १७ वर्षकी अवस्थामें अमेरिकाके एक गवर्नरके साथ हुआ। बादमें चलकर ब्लैवेट्स्कीने इस संबंधका विच्छेद कर लिया, और देशाटनके विचारसे वे हिन्दुस्तान आई । इन्होंने तिब्बत रूस आदि देशोंमें भी भ्रमण किया । ब्लैवेट्स्कीने कर्नेल आलकट साहबकी मददसे सन् १८७४ में थियोसफिकल सोसायटीकी स्थापना की । ये सन् १८७९ में फिर हिदुस्तान आई, और बड़े बड़े शहरोंमें जाकर अपने सिद्धांतोंका प्रचार करने लगी। थियोसफीधर्म सब धर्मोका समन्वय करता है, और प्रत्येक धर्मके महान् पुरुषोंको पूज्यदृष्ठिसे देखता है । हिन्दु, मुसलमान, पारसी १०३

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