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विविध पत्र मादि संग्रह-३१वाँ वर्ष
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शून्य (ज्ञानरहित ) दशा मानते हैं, उसका 'बुझंति से निषेध किया गया है। इस तरह सिद्ध और बुद्ध होनेके बाद ' मुञ्चति ' अर्थात् वे सर्वकर्मसे रहित होते हैं; और उसके पश्चात् 'परिणिन्वायंति' अर्थात् वे निर्वाण पाते हैं-कर्मरहित होनेसे वे फिरसे जन्म-अवतार-धारण नहा करते। 'मुक्त जीव कारणविशेषसे अवतार धारण करता है। इस मतका 'परिणिव्वायंति' कहकर निषेध किया है। कारण कि भवके कारणभूत कर्मसे जो सर्वथा मुक्त हो गया है, वह फिरसे भव धारण नहीं करता; क्योंकि कारणके बिना कार्य नहीं होता । इस तरह निर्वाण-प्राप्त जीव 'सव्वदुक्खाणमंतं करेंति'-अर्थात् सर्व दुःखोंका अंत करते हैं उनके दुःखका सर्वथा अभाव हो जाता हैसहज स्वाभाविक सुख आनन्दका अनुभव करते हैं-यह कहकर ' मुक्त आत्माओंको केवल शून्यता ही है, आनन्द नहीं' इस मतका निषेध किया है।
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(१) + इणमेव निग्गंथं पावयणं सर्च अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं संमुदं णेयाउयं सल्लकतणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निजाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमसंदिदं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं । एत्यं ठिया जीवा सिझंति बुज्झति मुचंति परिणिन्वायंति सम्बदुक्खाणमंतं करेंति । तमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसीयामो तहा तुयट्टामो तहा झुंजामो तहा भासामो तहा अन्भुढामो तहा उडाए उठेमोत्ति पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामोति।
(२) १. अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानांजनशलाकया।
नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ -जो अज्ञानरूपी तिमिर ( अंधकार ) से अंध हैं, उनके नेत्रोंको जिसने ज्ञानरूपी अंजनकी सलाईसे खोला, उन श्रीसद्गुरुको नमस्कार हो।
२. मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् ।
झातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुणलब्धये ॥ -मोक्षमार्गके नेता ( मोक्षमार्गमें ले जानेवाले ), कर्मरूपी पर्वतके भेत्ता ( भेदनेवाले और समग्र तत्त्वोंके ज्ञाता ( जाननेवाले ) को, मैं उन गुणोंकी प्राप्तिके लिये नमस्कार करता हूँ।
यहाँ ' मोक्षमार्गके नेता' कहकर, आत्माके अस्तित्वसे लगाकर उसके मोक्ष और मोक्षके ___ + यह निग्रंथप्रवचन सत्य है, अनुत्तर है, केवल-भाषित है, पूर्ण है, अत्यंत शुद्ध है, न्यायसंपन्न है, शल्यको काटनेमें कैंचीके समान है, सिद्धिका मार्ग है, मुक्तिका मार्ग है, आवागमनरहित होनेका मार्ग है, निर्वाणका मार्ग है, सत्य है, असंदिग्ध है, और सर्व दु:खोके क्षय करनेका मार्ग है। इस मार्ग स्थित जीव सिदि पाते बोष पाते हैं, सब कोसे मुक्त होते है, निर्वाण पाते हैं, और सर्व दु:खौका अन्त करते हैं। आपकी आशापूर्वक हम भी उसी तरह चलते हैं, उसी तरह खड़े होते हैं, उसी तरह बैठते हैं, उसी तरह सोते है, उसी तरह भोजन करते उसी तरह बोलते है, उसी तरह सावधानीसे प्रवृत्ति करते है, और उसी तरह उठते. तया उस तरह उठते हुए जिससे प्राण-भूत-जीव-सत्त्वोंकी हिंसा न हो ऐसे संयमका आचरण करते है।-अनुवादक.