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भीमद राजचन्द्र
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७७८ १. जो सर्व वासनाका क्षय करे वह सन्यासी । जो इंद्रियोंको वशमें रक्खे वह गोंसाई । जो संसारसे पार हो वह यति ( जति)।
२. समकिती को आठ मदोंमेंसे एक भी मद नहीं होता ।
३. (१) अविनय (२) अहंकार (३) अर्धदग्धता-अपनेको ज्ञान न होनेपर भी अपनेको ज्ञानी मान बैठना, और (४) रसलुब्धता-इन चारमेंसे जिसे एक भी दोष हो, उस जीवको समकित नहीं होता, ऐसा श्रीठाणांगसूत्रमें कहा है।
१. मुनिको यदि व्याख्यान करना पड़ता हो, तो ऐसा भाव रखकर व्याख्यान करना चाहिये कि वह स्वयं सज्झाय ( स्वाध्याय ) करता है । मुनिको सबेरे सज्झायकी आज्ञा है, वह मनमें की जाती है। उसके बदले व्याख्यानरूप सज्झायको, ऊँचे स्वरसे मान, पूजा, सत्कार, आहार आदिकी अपेक्षा बिना, केवल निष्कामबुद्धिसे आत्मार्थके लिये ही करनी चाहिये।
५. क्रोध आदि कषायका जब उदय हो, तब उसके सामने होकर उसे बताना चाहिये कि तूने मुझे अनादिकालसे हैरान किया है। अब मैं इस तरह तेरा बल न चलने दूंगा । देख, मैं अब तेरेसे युद्ध करने बैठा हूँ।
६. निद्रा आदि प्रकृति और कोध आदि अनादि वैरीके प्रति क्षत्रियभावसे रहना चाहिये, उनका अपमान करना चाहिये । यदि वे फिर भी न मानें, तो उन्हें क्रूर होकर उपशांत करना चाहिये । यदि फिर भी वे न मानें, तो उन्हें खयालमें ( उपयोगमें ) रखकर, समय आनेपर उन्हें मार डालना चाहिये । इस तरह शूर क्षत्रियस्वभावसे रहना चाहिये; जिससे वैरीका पराभव होकर समाधिसुख प्राप्त हो।
७. प्रभुकी पूजामें पुष्प चढ़ाये जाते हैं । उसमें जिस गृहस्थको हरियालीका नियम नहीं है, वह अपने कारणसे उनका उपयोग कम करके, प्रभुको फूल चढ़ा सकता है । त्यागी मुनिको तो पुष्प चढ़ाने अथवा उसके उपदेशका सर्वथा निषेध ही है । ऐसा पूर्वाचार्योका प्रवचन है।
८. कोई सामान्य मुमुक्षु भाई-बहन साधनके विषयमें पूँछे तो उसे ये साधन बताने चाहिये:(१) सात व्यसनका त्याग.
(६) 'सर्वज्ञदेव' और 'परमगुरु'की (२) हरियालीका त्याग.
पाँच पाँच मालाओंकी जाप. (३) कंदमूलका त्याग.
(७) *भक्तिरहस्य दोहाका पठन-मनन. (४) अभक्ष्यका त्याग.
(८)xक्षमापनाका पाठ. (५) रात्रिभोजनका त्याग.
(९) सत्समागम और सत्शास्त्रका सेवन. ९. 'सिझति, ''बुझांति,'' मुञ्चति, परिणिन्वायति' और 'सव्वदुक्खाणमंतं करेंति'इन शब्दोंके रहस्यका विचार करना चाहिये । “सिझंति' अर्थात् सिद्ध होते हैं। उसके बादमें 'बुशंति ' अर्थात् बोधसहित-ज्ञानसहित-होते हैं। आत्माके सिद्ध होनेके बाद कोई उसकी
* अंक २२४, x मोक्षमाला पाठ ५६.-अनुवादक