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श्रीमद् राजचन्द्र प्रत्यक्ष दर्शन दिया करती थीं । मुनिसुंदरसूरिने अपने गुरुदेव सुंदरसूरिकी सेवामें एकसौ आठ हाथ लम्बा एक विज्ञप्तिपत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने नाना तरहके सैकड़ों चित्र और हजारों काव्य लिखे थे। मुनिसंदरसूरिने स्वोपज्ञ वृत्तिसहित उपदेशरत्नाकर, जयानंदचरित्र, शांतिकरस्तोत्र आदि अनेक प्रन्यीकी रचना की है। मुनिसुंदरसूरि वेताम्बर आनायमें बहुत प्रख्यात कवि गिने जाते हैं । ये सं० १५०३ में स्वर्गस्थ हुए । अध्यात्मकल्पद्रुममें सोलह अधिकार हैं । ग्रन्थका विस्तृत गुजराती विवेचन मोतीचन्द गिरधरलाल कापडियाने किया है, जो जैनधर्मप्रसारक सभाकी ओरसे सन् १९११ में प्रकाशित हुआ है। अध्यात्मसार ( देखो यशोविजय ). अनायदासजी. मालूम होता है अनाथदास कोई बहुत अच्छे वेदान्ती थे। इन्होंने गुजरातीमें विचारमाला नामक ग्रंथ बनाया है । इस ग्रंथके ऊपर टीका भी है । राजचन्द्रजीने इस ग्रन्थका अवलोकन करनेके लिये लिखा है । उपदेशछायामें अनाथदासजीका एक वचन भी राजचन्द्राने उद्धृत किया है। अनुभवप्रकाश (पक्षपातरहित अनुभवप्रकाश )
इस ग्रन्थके कर्ता विशुद्धानन्दजीने गृहस्थाश्रमके त्याग करनेके पश्चात् बहुत समयतक देशाटन किया, और तत्पश्चात् वे हृषीकेशमें आकर रहने लगे । ये सदा संत पुरुषोंके समागममें रहते हुए ब्रह्मविचारमें मन रहते थे। विशुद्धानन्दजीने हृषीकेशमें रहकर नाना प्रकारके कष्ट उठाये । इन्होंने कलकत्ताके सेठ सूर्यमलजीको प्रेरित कर हृषीकेशमें अन्नक्षेत्र आदि भी स्थापित किये, जिससे वहाँ रहनेवाले संत साधुओंको बहुत आराम मिला । विशुद्धानन्दजीको किसी धर्म या वेषके लिये कोई आग्रह न था। ये केवल दो कंबली रखते थे । अनुभवप्रकाशका गुजराती भाषांतर सन् १९२७ में बम्बईसे प्रकट हुआ है । इसमें आठ सर्ग हैं, जिनमें वेदान्तविषयका वर्णन है । प्रहादआख्यान तृतीय सर्गमें आता है। अभयकुमार ( देखो प्रस्तुत प्रन्थ, मोक्षमाला पाठ ३०-३२ ). अंबारामजी
xअम्बारामजी और उनकी पुस्तकके संबंधमें राजचन्द्रजी लिखते हैं-"हमने इस पुस्तकका बहुतसा भाग देखा है। परन्तु हमें उनकी बातें सिद्धान्तज्ञानसे बराबर बैठती हुई नहीं मालूम होती। और ऐसा ही है; तथापि उस पुरुषकी दशा अच्छी है। मार्गानुसारी जैसी है, ऐसा तो कह सकते हैं।" तथा " धर्म ही जिनका निवास है, वे अभी उस भूमिकामें नहीं आये ।" . अयमंतकुमार
इनके बाल्यावस्थामें मोक्ष प्राप्त करनेका राजचन्द्रजीने मोक्षमालामें उल्लेख किया है। इनकी कथा भगवतीसूत्रमें आती है। अष्टक ( देखो हरिभद्र ). अष्टपाहुड़ ( देखो कुन्दकुन्द ).
अगाससे पं० गुणभद्रजी सूचित करते हैं कि अंबारामजी मादरणके निवासी एक महन्त थे। इनोंने बहुतसे. मजन भादि बनाये हैं । लेखक.