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भीमद् राजचन्द्र
[ ७८३, ७८४ ७८३ . खेडा, दि. आसोज वदी १९५१ हे जीव ! इस क्लेशरूप संसारसे निवृत्त हो, निवृत्त हो ।
वीतराग प्रवचन.
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श्रीखेका, द्वि० आसोज वदी १९५१ प्रश्न-क्या आत्मा है। उत्तर-हाँ, आत्मा है। प्र.-क्या आप अनुभवसे कहते हो कि आत्मा है !
उ.-हाँ, हम अनुभवसे कहते हैं कि आत्मा है । जैसे मिश्रीके स्वादका वर्णन नहीं हो सकता, वह अनुभवगोचर है; इसी तरह आत्माका वर्णन नहीं हो सकतावह भी अनुभवगोचर है। परन्तु वह है अवश्य ।
प्र. जीव एक है या अनेक ! आपके अनुभवका उत्तर चाहता हूँ। उ.-जीव अनेक हैं। प्र.-क्या जड, कर्म वास्तवमें हैं, अथवा यह सब मायिक है ! उ.-जड़, कर्म वास्तविक है, मायिक नहीं। प्र.-क्या पुनर्जन्म है ! उ.-हाँ, पुनर्जन्म है। प्र. क्या आप वेदान्तद्वारा मान्य मायिक ईश्वरका अस्तित्व मानते हैं ! उ.-नहीं।
प्र.-क्या दर्पणमें पढ़नेवाला प्रतिबिम्ब केवल ऊपरका दिखाव ही है, या वह किसी तत्त्वका बना हुआ है ! .
उ.-दर्पणमें पड़नेवाला प्रतिबिम्ब केवल दिखाव ही नहीं, किन्तु वह अमुक तत्त्वका बना हुआ है।
मेरा चित्त-मेरी चित्तवृत्तियाँ इतनी शांत हो जाओ कि कोई मृग भी इस शरीरको देखकर खड़ा हो जाय, भय पाकर भाग न जाय !
मेरी चित्तवृत्ति इतनी शांत हो जाओ कि कोई वृद्ध मृग, जिसके सिरमें खुजली आती हो, इस शरीरको जब पदार्थ समझकर, अपने सिरकी खुजली मिटानेके लिये इस शरीरको रगरे ।
- यह लेख भीमद्का स्वयंका लिखा हुआ नहीं है । खेवाके एक विदांतविद् विद्वान् वकील के साथ जो श्रीमद् राजचन्द्रका प्रभोत्तर हुआ था, उसे यहाँ दिया गया है। अनुवादक.