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श्रीमद् राजचन्द्र [८६४ व्याख्यानसार-प्रभसमाधान लेकर पूर्वपर्याय स्मृतिमें नहीं रहती, इसलिये वह होती ही नहीं यह नहीं कहा जा सकता । जिस तरह आम आदि वृक्षोंकी कलम की जाती है, तो उसमें यदि सानुकूलता होती है तो ही वह लगती है; उसी तरह यदि पूर्वपर्यायकी स्मृति करनेकी सानुकूलता (योग्यता) हो तो जातिस्मरण ज्ञान होता है। पूर्वसंज्ञा कायम होनी चाहिये । असंज्ञीका भव आ जानेसे जातिस्मरण ज्ञान नहीं होता।
३. आत्मा है । आत्मा नित्य है । उसके प्रमाणः
(१) बालकको दूध पीते हुए क्या 'चुक चुक' शब्द करना कोई सिखाता है ! वह तो पूर्वका अभ्यास ही है।
' (२) सर्प और मोरका, हाथी और सिंहका, चूहे और बिल्लीका स्वाभाविक वैर है । उन्हें उसे कोई भी नहीं सिखाता । पूर्वभवके वैरकी स्वाभाविक संज्ञा है-पूर्वज्ञान है ।
१. निःसंगता यह वनवासीका विषय है-ऐसाज्ञानियोंने कहा है, वह सत्य है । जिसमें दोनों व्यवहार (सांसारिक और असांसारिक) होते हैं, उससे निःसंगता नहीं होती।
५. संसारके छोड़े बिना अप्रमत्त गुणस्थानक नहीं। अप्रमत्त गुणस्थानककी स्थिति अन्तर्मुहूर्तकी है । ६. 'हमने समझ लिया है, हम शान्त हैं'-ऐसा जो कहते हैं वे ठगाये जाते हैं ।
७. संसारमें रहकर सातवें गुणस्थानके ऊपर नहीं चढ़ सकते; इससे संसारी जीवको निराश न होना चाहिये-परन्तु उसे ध्यानमें रखना चाहिये ।
८. पूर्वमें स्मृतिमें आई हुई वस्तुको फिर शांतभावसे याद करे तो वह यथास्थित याद पड़ती है।
९. ग्रंथिके दो भेद हैं-एक द्रव्य--बाह्यप्रन्थि (चतुष्पद, द्विपद, अपद इत्यादि ); दूसरी भाव-अभ्यंतरग्रंथि (आठ कर्म इत्यादि)। सम्यक् प्रकारसे जो दोनों ग्रंथियोंसे निवृत्त हो, वह निग्रंथ है।
१०. मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति आदि भाव जिसे छोड़ने ही नहीं, उसके वस्त्रका त्याग हो, तो भी वह पारलौकिक कल्याण क्या करेगा !
११. सक्रिय जीवको अबंधका अनुष्ठान हो, ऐसा कभी बनता ही नहीं । ( क्रिया होनेपर अबंध गुणस्थानक नहीं होता )।
.. १२. राग आदि दोषोंका क्षय होनेसे उनके सहकारी कारणोंका क्षय होता है; जबतक उनका सम्पूर्णरूपसे क्षय नहीं होता, तबतक मुमुक्षु जीव संतोष मानकर नहीं बैठता।
१३. राग आदि दोष और उनके सहकारी कारणोंके अभाव होनेपर बंध नहीं होता । राग भादिके प्रयोगसे कर्म होता है। उनके अभावमें सब जगह कर्मका अभाव ही समझना चाहिये।
११. आयुकर्म:
(अ) अपवर्तन-विशेष कालका हो तो वह कर्म थोड़े ही कालमें वेदन किया जा सकता है। इसका कारण पूर्वका वैसा बंध है, इससे वह इस प्रकारसे उदयमें आता है--भोगा जाता है।
(आ) 'टूट गया' शब्दका अर्थ बहुतसे लोग 'दो भाग होना' करते हैं; परन्तु उसका अर्थ वैसा नहीं है । जिस तरह 'कर्जा टूट गया' शब्दका अर्थ 'कर्जा उतर गया-कर्जा दे दिया ' होता है, उसी तरह 'आयु टूट गई' शब्दका आशय समझना चाहिये।