Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 880
________________ श्रीमद् राजचन्द्र [८६३ व्याख्यानसार-प्रभसमाधान ५. तीर्थकर आदिको गृहस्थाश्रममें रहनेपर भी गाद अथवा अवगाढ सम्यक्त्व होता है। ६. गाद अथवा अवगाढ़ एक ही कहा जाता है। ७. केवलीको परमावगाढ सम्यक्त्व होता है । ८. चौथे गुणस्थानमें गाढ़ अथवा अवगाढ सम्यक्त्व होता है। ९. क्षायिकसम्यक्त्व अथवा गाढ़ अवगाद सम्यक्त्व एक समान हैं। १०. देव, गुरु, तत्त्व अथवा धर्म अथवा परमार्थकी परीक्षा करनेके तीन प्रकार हैं-कष छेद और ताप । इस तरह तीन प्रकारकी कसौटी होती है। यहाँ सोनेकी कसौटीका दृष्टान्त लेना चाहिये (धर्मबिन्दु ग्रन्थमें है)। पहिला और दूसरा प्रकार किसी दूसरेमें भी मिल सकते हैं। परन्तु तापकी विशुद्ध कसौटीसे जो शुद्ध गिना जाय, वही देव गुरु और धर्म सञ्चा गिना जाता है। ११. शिष्यकी जो कमियाँ होती हैं, वे जिस उपदेशकके ध्यानमें नहीं आती, उसे उपदेशकर्ता न समझना चाहिये । आचार्य ऐसे चाहिये जो शिष्यके अल्पदोषको भी जान सकें और उसका यथासमय बोध भी दे सकें। १२. सम्यक्दृष्टि गृहस्थ ऐसा चाहिये जिसकी प्रतीति दुश्मन भी करें-ऐसा ज्ञानियोंने कहा है। तात्पर्य यह है कि ऐसे निष्कलंक धर्म पालनेवाले चाहिये । (१९) रात्रि. १. अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञानमें अन्तर* । २. परमावधिज्ञान मनःपर्यवज्ञानसे भी चढ़ जाता है; और वह एक अपवादरूप है। (२०) आषाढ वदी ७ बुध. १९५६ १. आराधना होनेके लिए समस्त श्रुतज्ञान है; और उस आराधनाका वर्णन करनेके लिये श्रुतकेवली भी अशक्य हैं। २. ज्ञान, लब्धि, ध्यान और समस्त आराधनाका प्रकार भी ऐसा ही है। • ३. गुणकी अतिशयता ही पूज्य है, और उसके आधीन लब्धि सिद्धि इत्यादि हैं, और चारित्र स्वच्छ करना यह उसकी विधि है। ४. दशवकालिककी पहिली गाथा___ + धम्मो मंगलमुकिटं, अहिंसा संयमो तवो। देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥ इसमें सब विधि गर्भित हो जाती है। परन्तु अमुक विधि ऐसी नहीं कही गई, इससे यह समझमें आता है कि स्पष्टरूपसे विधि नहीं बताई । * लेखकका नोट-अवधिज्ञान और मनःपर्यवशानसंबंधी जो कथन नंदीसूत्रमें है उससे मिन कथन भगवतीआरधनामें है-ऐसा श्रीमद्ने कहा । पहिलेके ( अवधिशानके ) टुकड़े हो सकते हैं, जैसे हयिमान इत्यादि वह चौथे गुणस्थानमें भी हो सकता है। स्थूल है; और मनकी स्थूल पर्यायको जान सकता है। तथा दूसरा (मनःपर्यवशान) स्वतंत्र है; खास मनकी पर्यायसंबंधी शक्तिविशेषको लेकर एक मिन इलाकेके समान है; और वह अप्रमत्तको ही हो सकता है-इत्यादि उन्होंने मुख्य मुख्य अंतर बताये। - + धर्म-अहिंसा संयम और तप-ही उत्कृष्ट मंगल है। जिसका धर्म निरन्तर मन है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं।-अनुवादक.

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