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भीमद् राजचन्द्र
[पत्र ८६४
जैसे हर्ष होता है, उसी तरह पुद्गल द्रव्यरूपी शुभाशुभ कर्ज, जिस कालमें उदयमें आ जाय, उस कालमें उसे सम्यक् प्रकारसे वेदन कर चुका देनेसे निर्जरा हो जाती है, और नया कर्ज नहीं होता। इसलिये ज्ञानी-पुरुषको कर्ज से मुक्त होनेके लिये हर्षयुक्त भावसे तैय्यार रहना चाहिये । क्योंकि उसके चुकाये बिना छुटकारा नहीं।
२२. सुखदुःख जो द्रव्य क्षेत्र काल भावमें उदय आना हो, उसमें इन्द्र आदि भी फेरफार करनेमें समर्थ नहीं हैं।
२३. करणानुयोगमें ज्ञानीने अंतमुहूर्त आत्माका अप्रमत्त उपयोग माना है । २४. करणानुयोगमें सिद्धान्तका समावेश होता है। २५. चरणानुयोगमें जो व्यवहारमें आचरण किया जाय उसका समावेश किया है ।
२६. सर्वविरति मुनिको ब्रह्मचर्यव्रतकी प्रतिज्ञा ज्ञानी देता है, वह चरणानुयोगकी अपेक्षासे है। करणानुयोगकी अपेक्षासे नहीं । क्योंकि करणानुयोगके अनुसार नवमें गुणस्थानकमें वेदोदयका क्षय हो सकता है-तबतक नहीं हो सकता ।
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वढ़वाण कैम्प, भाद्रपद वदी १९५६
(१)
(१) मोक्षमालाके पाठ हमने माप माप कर लिखे हैं।
पुनरावृत्तिके संबंधमें जैसे सुख हो वैसा करना । कुछ वाक्योंके नीचे (अंडर लाइन) लाईन की है, वैसा करना जरूरी नहीं।
श्रोता-वाचकको यथाशक्ति अपने अभिप्रायपूर्वक प्रेरित न करनेका लक्ष रखना चाहिये । श्रोता-वाचकमें स्वयं ही अभिप्राय उत्पन्न होने देना चाहिये। सारासारके तोलन करनेको वाचक-श्रोताके खुदके ऊपर छोड़ देना चाहिये । हमें उन्हें प्रेरित कर, उन्हें स्वयं उत्पन्न हो सकनेवाले,, अभिप्रायको रोक न देना चाहिये।
प्रज्ञावबोध भाग मोक्षमालाके १०८ दाने यहाँ लिखावेंगे।
(२) परम सत्श्रुतके प्रचाररूप एक योजना सोची है । उसका प्रचार होनेसे परमार्थ मार्गका प्रकाश होगा।
(२)
श्रीमोक्षमालाके प्रज्ञावबोधभागकी संकलना. १. वाचकको प्रेरणा. ८. प्रमादके स्वरूपका विशेष १४. महात्माओंकी असंगता. २. जिनदेव.
विचार.
१५. सर्वोत्कृष्ट सिद्धि. ३. निम्रन्थ.
९. तीन मनोरथ. १६. अनेकांतकी प्रमाणता. १. दया ही परमधर्म है. १०, चार सुखशय्या. . १७. मनभ्रांति.. ५. सच्चा ब्राह्मणत्व. ११. व्यावहारिक जीवोंके भेद. १८. तप. ६. मैत्री आदि चार भावनायें. १२. तीन आत्मायें. १९. ज्ञान. . .७. सत्शाखाका उपकार. . १३. सम्यग्दर्शन. . . '२०. क्रिया. . . . .