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भीमद् राजचन्द्र २ शंका-शिष्य उवाचशिष्य कहता है कि आत्मा नित्य नहीं है:
आत्माना अस्तित्वना, आप कला प्रकार ।
संभव तेनो थाय छे, अंतर कर्ये विचार ॥ ५९॥ आत्माके अस्तित्वमें आपने जो जो बातें कहीं, उनका अंतरंगमें विचार करनेसे वह अस्तित्व तो संभव मालूम होता है।
बीजी शंका थाय त्यां, आत्मा नहीं अविनाश ।
देहयोगयी उपजे, देहवियोगे नाश ॥ ६॥ परन्तु दूसरी शंका यह होती है कि यदि आत्मा है तो भी वह अविनाशी अर्थात् नित्य नहीं है। वह तीनों कालमें रहनेवाला पदार्थ नहीं, वह केवल देहके संयोगसे उत्पन्न होती है और उसके वियोगसे उसका नाश हो जाता है।
अथवा वस्तु क्षणिक छे, क्षणे क्षणे पलटाय ।
ए अनुभवथी पण नहीं, आत्मा नित्य जणाय ।।६१ ॥ अथवा वस्तु क्षण क्षणमें बदलती हुई देखनेमें आती है, इसलिये सब वस्तु क्षणिक हैं, और अनुभवसे देखनेसे भी आत्मा नित्य नहीं मालूम होती । समाधान-सद्गुरु उवाच:सद्गुरु समाधान करते हैं कि आत्मा नित्य है:
देह मात्र संयोग छे, वळी जडरूपी दृश्य ।
चेतना उत्पत्ति लय, कोना अनुभव वश्य ॥ ६२॥ समस्त देह परमाणुके संयोगसे बनी है, अथवा संयोगसे ही आत्माके साथ उसका संबंध है। तथा वह देह जड़ है, रूपी है और दृश्य अर्थात् दूसरे किसी द्रष्टाके जाननेका विषय है; इसलिये जब वह अपने आपको भी नहीं जानती तो फिर चेतनकी उत्पत्ति और नाशको तो वह कहाँसे जान सकती है! उस देहके एक एक परमाणुका विचार करनेसे भी वह जड़ ही समझमें आती है। इस कारण उसमेंसे चेतनकी उत्पत्ति नहीं हो सकती और जब उसमें उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती तो उसके साथ चेतनका नाश भी नहीं हो सकता । तथा वह देह रूपी अर्थात् स्थूल आदि परिणामवाली है, और चेतन द्रष्टा है। फिर उसके संयोगसे चेतनकी उत्पत्ति किस तरह हो सकती है ! और उसके साथ उसका नाश भी कैसे हो सकता है ! तथा देहमेंसे चेतन उत्पन्न होता है, और उसके साथ ही वह नाश हो जाता है, यह बात किसके अनुभवके आधीन है ! अर्थात् इस बातको कौन जानता है ! क्योंकि जाननेवाले चेतनकी उत्पत्ति देहसे प्रथम तो होती नहीं, और नाश तो उससे पहिले ही हो जाता है। तो फिर यह अनुभव किसे होता है।॥ __आशंका:-जीवका स्वरूप अविनाशी अर्थात् नित्य त्रिकालवर्ती होना संभव नहीं । वह देहके योगसे अर्थात् देहके जन्मके साथ ही पैदा होता है, और देहके वियोग अर्थात् देहके नाश होनेपर वह नाश हो जाता है।