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.'श्रीमद् राजचन्द्र
प्राणीमात्रका यह प्रयत्न होनेपर भी, वे दुःखका ही अनुभव करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । यपि कहीं कहीं कोई सुखका अंश जो किसी किसी प्राणीको प्राप्त हुआ दिखाई देता भी है, तो वह भी दुःखकी बाहुल्यतासे ही देखनेमें आता है।
शंकाः-प्राणीमात्रको दुःख अप्रिय होनेपर भी, तथा उसके दूर करनेके लिये उसका सदा प्रयत्न रहनेपर भी, वह दुःख दूर नहीं होता; तो फिर इससे तो ऐसा समझमें आता है कि उस दुःखके दूर करनेका कोई उपाय ही नहीं है । क्योंकि जिसमें सबका प्रयत्न निष्फल ही चला जाता हो वह बात तो निरुपाय ही होनी चाहिये !
समाधानः-दुःखके स्वरूपको यथार्थ न समझनेसे; तथा उस दुःखके होनेके मूल कारण क्या हैं, और वे किस तरह दूर हो सकते हैं, इसे यथार्थ न समझनेसे; तथा दुःख दूर करनेका जीवोंका प्रयत्न स्वभावसे ही अयथार्थ होनेसे, वह दुःख दूर नहीं हो सकता।
दुःख यद्यपि सभीके अनुभवमें आता है, तो भी उसके स्पष्टरूपसे ध्यानमें आनेके लिये उसका यहाँ थोड़ासा व्याख्यान करते हैं:
प्राणी दो प्रकारके होते हैं:...(१) एक त्रस और दूसरे स्थावर । बस उन्हें कहते हैं जो स्वयं भय आदिका कारण देखकर भाग जाते हों और जो चलने-फिरने आदिकी शक्ति रखते हों। .
(२) स्थावर उन्हें कहते हैं कि जो, जिस जगह देह धारण की है उसी जगह रहते हों और जिनमें भय आदिके कारण समझकर भाग जाने वगैरहकी समझ-शक्ति न हो।
अथवा एकेन्द्रियसे लगाकर पाँच इन्द्रियतक पाँच प्रकारके प्राणी होते हैं। एकेन्द्रिय प्राणी स्थावर कहे जाते हैं, और दो इन्द्रियवाले प्राणियोंसे लगाकर पाँच इन्द्रियोंतकके प्राणी त्रस कहे जाते हैं। किसी भी प्राणीको पाँच इन्द्रियोंसे अधिक इन्द्रियाँ नहीं होती।
एकेन्द्रियके पाँच भेद हैं: पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ।। . वनस्पतिका जीवत्व तो साधारण मनुष्योंको भी कुछ अनुमानसे समझमें आता है।
पृथिवी, जल, अग्नि, और वायुमें जीवका अस्तित्व आगम-प्रमाणसे और विशेष विचारबलसे कुछ समझमें आ सकता है-यद्यपि उसका सर्वथा समझमें आना तो प्रकृष्ट ज्ञानका ही विषय है।
___ अमि और वायुकायिक जीव कुछ कुछ गतियुक्त देखनेमें आते हैं, परन्तु वह गति अपनी निजकी शक्तिकी समझपूर्वक नहीं होती, इस कारण उन्हें भी स्थावर ही कहा जाता है।
- यपि एकेन्द्रिय जीवोंमें वनस्पतिमें जीव सुप्रसिद्ध है, फिर भी इस प्रथमें अनुक्रमसे उसके प्रमाण आवेंगे । पृथिवी, जल, अग्नि और वायुमें निम्न प्रकारसे जीवकी सिद्धि की गई है:-(अपूर्ण).
जीवके लक्षण:- . . . . ..
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जीवका मुख्य लक्षण चैतन्य है, वह देहके प्रमाण है, .