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भीमद् राजचन्द्र
[७.. पंचास्तिकाय भावका कभी नाश नहीं होता, और अभावकी उत्पत्ति नहीं होती । उत्पाद और व्यय गुणपर्यायके स्वभावसे ही होते हैं ॥ १५॥
जीव आदि छह पदार्थ हैं । जीवका गुण चैतन्य-उपयोग है । देव, मनुष्य, नारक, तिर्यच आदि उसकी अनेक पर्यायें हैं ॥ १६॥
मनुष्य-पर्यायसे मरण पानेवाला जीव, देव अथवा अन्य किसी स्थानमें उत्पन्न होता है । परन्तु दोनों जगह जीवत्व तो ध्रुव ही रहता है। उसका नाश होकर उससे अन्य कुछ उत्पन्न नहीं होता ॥१७॥
जो जीव उत्पन्न हुआ था, उसी जीवका नाश होता है। वस्तुतः तो वह जीव न तो उत्पन्न होता है और न उसका नाश ही होता है । उत्पन्न और नाश तो देव और मनुष्य पर्यायका ही होता है ॥१८॥
इस तरह सत्का विनाश और असत् जीवकी उत्पत्ति होती है । जीवको जो देव मनुष्य आदि पर्याय होती हैं वे गतिनाम कर्मसे ही होती हैं ॥ १९॥
जीवने ज्ञानावरणीय आदि कर्मभावोंको सुदृढ़रूपसे-अतिशय गादरूपसे—बाँध रखा है। उनका अभाव करनेसे अभूतपूर्व सिद्धपद मिलता है ॥ २०॥
इस तरह गुण-पर्यायसहित जीव भाव, अभाव, भावाभाव और अभाव-भावसे संसारमें परिभ्रमण करता है ॥ २१ ॥
जीव, पुद्गलसमूह, आकाश तथा बाकीके अस्तिकाय किसीके भी बनाये हुए नहीं—वे स्वरूपसे ही अस्तित्व-स्वभावाले हैं, और लोकके कारणभूत हैं ॥ २२ ॥
सता स्वभाववाले जीव और पुद्गलके परिवर्तनसे उत्पन्न जो काल है, उसे निश्चयकाल कहा है ॥ २३॥
वह काल पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध, और आठ स्पर्शसे रहित है, अगुरुलघु गुणसे सहित है, अमूर्त है और वर्तना लक्षणसे युक्त है ॥ २४ ॥ ___* समय, निमेष, काष्ठा, कला, नाली, मुहूर्त, दिवस, रात्रि, मास, ऋतु, और संवत्सर आदि काल व्यवहारकाल है ॥ २५ ॥
कालके किसी भी परिमाण (माप) के बिना बहुकाल और अल्पकालका भेद नहीं बन सकता। तथा उसकी मर्यादा पुद्गल द्रव्यके बिना नहीं होती, इस कारण कालका पुद्गल द्रव्यसे उत्पन्न होना कहा जाता है ॥२६॥ ... जीवत्वयुक्त, ज्ञाता, उपयोगसहित, प्रभु, कर्ता, भोक्ता, देहके प्रमाण, निश्चयनयसे अमूर्त, और कर्मावस्थामें मूर्त ये जीवके लक्षण हैं ॥२७॥
कर्म-मलसे सर्व प्रकारसे मुक्त होनेसे, ऊर्चलोकके अंतको प्राप्त होकर, वह सर्वज्ञ सर्वदशी जीव इन्द्रियसे पर अनंतसुखको प्राप्त करता है ॥ २८॥
मंद गतिसे चलनेवाले पुल-परमाणुकी जितनी देरमै अतिसूक्ष्म चाल हो, उसे समय कहते है। जितने समयमै मैत्रके पलक खुले उसे निमेष कहते हैं। असंख्यात समयोंका एक निमेष होता है। पन्दरह निमेषोंकी एक काम होती है। बीस काठाओंकी एक कला होती है। कुछ अधिक बीस कलाओंकी एक नाबी अथवा पटिका होती है। यो पठिकाका एक मुहूर्त होता है। तीस मुहूर्तका एक दिन-रात होता है। अनुवादक..।