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७५३ व्याख्यानसार]
विविध पत्र आदि संग्रह-३१वाँ वर्ष
३४. जीवको समझ आ जाय तो समझ आनेके बाद सम्यक्त्व बहुत सुगम हो जाता है । परन्तु समझ आनेके लिये जीवने आजतक सच्चा सच्चा लक्ष नहीं दिया । जीवको सम्यक्त्व प्राप्त होनेका जब जब योग मिला है, तब तब उसने उसपर बराबर ध्यान नहीं दिया । कारण कि जीवको अनेक अन्तराय मौजूद हैं। उनमें बहुतसे अन्तराय तो प्रत्यक्ष हैं, फिर भी वे जाननेमें नहीं आते। यदि कोई उन्हें बतानेवाला मिल जाय तो भी अंतरायके योगसे उनका ध्यानमें लेना नहीं बनता । तथा बहुतसे अंतराय अव्यक्त हैं, जिनका ध्यानमें आना भी मुश्किल है।
३५. सम्यक्त्वका स्वरूप केवल वचनयोगसे ही कहा जा सकता है । यदि वह एकदम कहा जाय तो उसमें जीवको उल्टा ही भाव मालूम होने लगे; तथा सम्यक्त्वके ऊपर उल्टी अरुचि ही हो जाय । परन्तु यदि वही स्वरूप अनुक्रमसे ज्यों ज्यों दशा बढ़ती जाती है, त्यों त्यों कहा जाय, अथवा समझाया जाय तो वह समझमें आ सकता है ।
३६. इस कालमें मोक्ष है-यह दूसरे मार्गों में कहा गया है। यद्यपि जैनमार्गमें इस कालमें अमुक क्षेत्रमें मोक्ष होना नहीं कहा जाता, फिर भी उसमें यह कहा गया है कि उसी क्षेत्रमें इस कालमें सम्यक्त्व हो सकता है।
३७. ज्ञान दर्शन और चारित्र ये तीनों इस कालमें मौजूद हैं। प्रयोजनभूत पदार्थोके जाननेको ज्ञान कहते हैं । उसकी सुप्रतीतिको दर्शन कहते हैं, और उससे होनेवाली जो क्रिया है उसे चारित्र कहते हैं । यह चारित्र इस कालमें जैनमार्गमें सम्यक्त्व होनेके बाद सात गुणस्थानतक प्राप्त किया जा सकता है, यह स्वीकार किया गया है।
३८. कोई सातवेंतक पहुँच जाय तो भी बड़ी बात है। ___३९. यदि कोई सातवेंतक पहुँच जाय तो उसमें सम्यक्त्व समाविष्ट हो जाता है; और यदि कोई वहाँतक पहुँच जाय तो उसे विश्वास हो जाता है कि आगेकी दशा किस तरहकी है ? परन्तु सातवेंतक पहुँचे बिना आगेकी बात ध्यानमें नहीं आ सकती।
४०. यदि बढ़ती हुई दशा होती हो तो उसे निषेध करनेकी जरूरत नहीं, और यदि बढ़ती हुई दशा न हो तो उसे माननेकी जरूरत नहीं । निषेध किये बिना ही आगे बढ़ते जाना चाहिये ।
४१. सामायिक छह और आठ कोटिका विवाद छोड़ देनेके पश्चात् नवकोटि बिना नहीं होता; और अन्तमें नवकोटिसेभी वृत्ति छोड़े बिना मोक्ष नहीं है।
४२. ग्यारह प्रकृतियोंके क्षय किये बिना सामायिक नहीं आता । जिसे सामायिक होता है उसकी दशा तो अद्भुत होती है । वहाँसे जीव छठे सातवें और आठवें गुणस्थानमें जाता है, और वहाँसे दो घड़ीमें मोक्ष हो सकती है।
. १३. मोक्षमार्ग तलवारकी धारके समान है, अर्थात् वह एकधारा-एकप्रवाहरूप-है। तीनों कालमें जो.एकधारासे अर्थात् एक समान रहे वही मोक्षमार्ग है; प्रवाहमें जो अखंड है वही मोक्षमार्ग है।
. ११. पहिले दो बार कहा जा चुका है फिर भी यह तीसरी बार कहा जाता है कि कहीं भी