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७५३ व्याख्यानसार] विविध पत्र आदि संग्रह-३१वाँ वर्ष भावोंसे क्रोध आदि भाव होते हों उन भावोंसे, अनंतानुबंधी कषायसे बंध होकर भविष्यमें भी अनंत संसारकी वृद्धि होती है।
२३. अनुभवका किसी भी कालमें अभाव नहीं है । परन्तु बुद्धिबलसे निश्चित की हुई जो. अप्रत्यक्ष बात है, उसका कचित् अभाव भी हो सकता है।
२४. क्या केवलज्ञान उसे कहते हैं कि जिसके द्वारा कुछ भी जानना शेष नहीं रहता! अथवा आत्मप्रदेशोंका जो स्वभाव है, उसे केवलज्ञान कहते हैं !
(अ) आत्मासे उत्पन्न किया हुआ विभावपरिणाम, और उससे जड़ पदार्थके संयोगरूपसे होनेवाले आवरणपूर्वक जो कुछ देखना और जानना होता है, वह इन्द्रियोंकी सहायतासे हो सकता है। परन्तु तत्संबंधी यह विवेचन नहीं है। यह विवेचन तो केवलज्ञानसंबंधी है।
' (आ) विभावपरिणामसे होनेवाला जो पुद्गलास्तिकायका संबंध है, वह आत्मासे भिन्न है । उसका, तथा जितना पुद्गलका संयोग हुआ है उसका, न्यायपूर्वक जो ज्ञान-अनुभव होता है वह सब अनुभवगम्यमें ही समाविष्ट होता है; और उसको लेकर जो समस्त लोकके पुद्गलोंका इसी तरहका निर्णय होता है, वह बुद्धिबलमें समाविष्ट होता है। उदाहरणके लिये जिस आकाशके प्रदेशमें अथवा उसके पास जो विभावयुक्त आत्मा स्थित है, उस आकाशके प्रदेशके उतने भागको लेकर जो अछेद्य अभेध अनुभव होता है, वह अनुभवगम्यमें समाविष्ट होता है; और उसके पश्चात् बाकीके आकाशको जिसे स्वयं केवलज्ञानीने भी अनंत-जिसका अंत नहीं-कहा है, उस अनंत आकाशका भी तदनुसार ही गुण होना चाहिये, यह बुद्धिबलसे निर्णय किया जाता है।
(इ) आत्मज्ञान उत्पन्न हो गया है अथवा आत्मज्ञान हो गया है-यह बात अनुभवगम्य है। परन्तु उस आत्मज्ञानके उत्पन्न होनेसे आत्मानुभव होनेके पश्चात् क्या क्या होना चाहिये, यह जो कहा गया है, वह बुद्धिबलसे ही कहा है, ऐसा समझा जा सकता है।
(ई) इन्द्रियोंके संयोगसे जो कुछ देखना जानना होता है, उसका यद्यपि अनुभवगम्यमें समावेश हो जाता है, यह ठीक है; परन्तु यहाँ तो आत्मतत्त्वसंबंधी अनुभवगम्यकी बात है । यहाँ तो जिसमें इन्द्रियोंकी सहायता अथवा संबंधकी आवश्यकता नहीं, उसके अतिरिक्त किसी दूसरेके संबंधकी ही बात है। केवलज्ञानी सहज ही देख और जान रहे हैं, अर्थात् उन्होंने लोकके सब पदार्थोका अनुभव किया है-ऐसा जो कहा जाता है, सो उसमें उपयोगका संबंध रहता है । कारण कि केवलज्ञानीके १३वाँ गुणस्थानक और १४वाँ गुणस्थानक इस तरह दो विभाग किये गये हैं । उनमें १३वें गुणस्थानवाले केवलज्ञानीके योग रहता है, यह स्पष्ट है; और जहाँ यह बात है वहाँ उपयोगकी खास जरूरत है और जहाँ उपयोगकी खास जरूरत है, वहाँ बुद्धिबल है, यह कहे बिना चल नहीं सकता। तथा जहाँ यह बात सिद्ध होती है, वहाँ अनुभवकी साथ साथ बुद्धिबल भी सिद्ध होता है।
(उ) इस तरह उपयोगके सिद्ध होनेसे आत्माके पासमें जो जड पदार्थ है, उसका तो अनुभव होता है, परन्तु जो पदार्थ पासमें नहीं है--जिसका संबंध नहीं है-उसका अनुभव कहनेमें कठिनाई आती है और उसकी साथ ही दूरवर्ती पदार्थ अनुभवगम्य नहीं हैं, ऐसा कहनेसे केवलज्ञानके प्रचलित