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७५३ (२) विविध पत्र मावि संग्रह-३वाँ वर्ष
७१९ होनेसे आत्मा स्वभावको छोड़कर आगे जाकर विशेषभावसे परिणमन करती है, वह विभाव है । इसी तरह जड़के लिये भी समझना चाहिये।
२०६. कालके अणु लोक-प्रमाण असंख्यात हैं। उस अणुमें रूक्ष अथवा स्निग्ध गुण नहीं हैं। इससे एक अणु दूसरेमें नहीं मिल जाता, और हरेक जुदा जुदा रहता है । परमाणुके पुद्गलमें वह गुण होनेसे मूलसत्ताके मौजूद रहनेके कारण उसका-परमाणु-पुद्गलका-स्कंध होता है।
(२)
उत्पाद.) व्यय. यह भाव एक वस्तुमें एक समयमें है।
ध्रुव. जीव और परमाणुओंका
जीव
बत्त
जीव परमाणु मान
भाव परमाणु.
संयोग. कोई जीव एकेन्द्रियरूपसे पर्याय है ।
दो इन्द्रियरूपसे , है
तीन इन्द्रियरूपसे ,, है वर्तमानभाव. , चार इन्द्रियरूपसे ,, है , पाँच इन्द्रियरूपसे , है )
संज्ञी
असंही
वर्तमानभाव.
सिद्धभाव
• पर्याप्त
अपर्याप्त
वर्तमानभाव.
ज्ञानी अज्ञानी मिथ्यादृष्टि
सम्यग्दृष्टि
वर्तमानभाव.
| .
.
. एक अंश क्रोध .
यावत अनंत अंश क्रोध.
.
. .
. . .
पत्तमानभाव..
यावत अनंत अंश क्रोध.