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६८० . । श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र ७१७ इस क्षेत्रमें इस कालमें श्रीसोभाग जैसे पुरुष विरले ही मिलते हैं यह हमें बारम्बार भासित होता है।
धीरजपूर्वक सबोंको खेदका शान्त करना, और उनके अद्भुत गुणों और उपकारी वचनोंका आश्रय लेना ही योग्य है । श्रीसोभाग मुमुक्षुओंद्वारा विस्मरण किये जाने योग्य नहीं हैं।
जिसने संसारके स्वरूपको स्पष्टरूपसे जान लिया है, उसे उस संसारके पदार्थकी प्राप्ति अथवा अप्रातिसे हर्ष-शोक होना योग्य नहीं है, तो भी ऐसा जान पड़ता है कि अमुक गुणस्थानतक उसे भी सत्पुरुषके समागमकी प्राप्तिसे कुछ हर्ष, और उसके वियोगसे कुछ खेद हो सकता है ।
- आत्मसिद्धि ग्रंथके विचार करनेकी इच्छा हो तो विचार करना । परन्तु उसके पहिले यदि और बहुतसे वचन और सद्ग्रन्थोंका विचार करना बन सके, तो आत्मसिद्धि प्रबल उपकारका हेतु होगा, ऐसा मालूम होता है।
श्रीसोभागकी सरलता, परमार्थसंबंधी निश्चय, मुमुक्षुओंके प्रति परम उपकारित्व आदि गुण बारम्बार विचार करने योग्य हैं । शांतिः शांतिः शांतिः.
७१७ बम्बई, आषाढ सुदी ४ रवि. १९५३
श्रीसोभागको नमस्कार. १. श्रीसोभागकी मुमुक्षुदशा तथा ज्ञानीके मार्गके प्रति उनका अद्भुत निश्चय बारम्बार स्मृतिमें आया करता है।
२. सब जीव सुखकी इच्छा करते हैं, परन्तु कोई विरला ही पुरुष उस सुखके यथार्थ स्वरूपको समझता है। - जन्म मरण आदि अनंत दुःखोंके आत्यंतिक (सर्वथा) क्षय होनेका उपाय, जीवको अनादिकालसे जाननेमें नहीं आया। जीव यदि उस उपायके जानने और करनेकी सच्ची इच्छा उत्पन्न होनेपर सत्पुरुषके समागमके लाभको प्राप्त करे तो वह उस उपायको समझ सकता है, और उस उपायकी उपासना करके सब दुःखोंसे मुक्त हो जाता है।
वैसी सची इच्छा भी प्रायः करके जीवको सत्पुरुषके समागमसे ही प्राप्त होती है। वैसा समागम, उस समागमकी पहिचान, बताए हुए मार्गकी प्रतीति और उस तरह आचरण करनेकी प्रवृत्ति होना जीवको परम दुर्लभ है।
'मनुष्यता, ज्ञानीके वचनोंका श्रवण मिलना, उसकी प्रतीति होना, और उनके द्वारा कहे हुए मार्गमें प्रवृत्ति होना परम दुर्लभ है'-यह उपदेश श्रीवर्धमानस्वामीने उत्तराध्ययनके तीसरे अध्ययनमें किया है।
प्रत्यक्ष सत्पुरुषका समागम और उसके आश्रयमें विचरण करनेवाले मुमुक्षुओंको मोक्षसंबंधी समस्त साधन प्रायः (बहुत करके) अल्प प्रयाससे और अल्प ही कालमें सिद्ध हो जाते हैं । परन्तु उस समागमका योग मिलना बहुत दुर्लभ है । मुमुक्षु जीवका चित्त निरन्तर उसी समागमके योगमें रहता है।
सत्पुरुषका योग मिलना तो जीवको सब कालमें दुर्लभ ही है। उसमें भी ऐसे दुःषमकामें तो