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भीमद् राजचन्द्र धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ये द्रव्य जड़ हैं। जीव द्रव्य चेतन है। धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये चार द्रव्य अमूर्त हैं। वस्तुतः काल औपचारिक द्रव्य है । धर्म, अधर्म, और आकाश एक एक द्रव्य हैं। काल, पुद्गल और जीव अनंत द्रव्य हैं। द्रव्य, गुण और पर्यायात्मक है।
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एकांत आत्मवृत्ति. एकांत आत्मा. केवल एक आत्मा. केवल एक आत्मा ही. केवल मात्र आत्मा. केवल मात्र आत्मा ही. आत्मा ही. शुद्ध आत्मा ही. सहज आत्मा ही. बस निर्विकल्प शब्दातीत सहजस्वरूप आत्मा ही.
मैं असंग शुद्ध चेतन हूँ । वचनातीत निर्विकल्प एकांत शुद्ध अनुभवस्वरूप हूँ। मैं परम शुद्ध अखंड चिद्धातु हूँ। अचिद् धातुके संयोग रसके इस आभासको तो देखो! आश्चर्यवत् आश्चर्यरूप, घटना है। अन्य किसी भी विकल्पका अवकाश नहीं है। स्थिति भी ऐसी ही है।