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विविध पत्र आदि संग्रह-३०वाँ वर्ष
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ॐ नमः
सब जीव सुखकी इच्छा करते हैं। दुःख सबको अप्रिय है। सब जीव दुःखसे मुक्त होनेकी इच्छा करते हैं। .. . उसका वास्तविक स्वरूप न समझनेसे दुःख दूर नहीं होता। उस दुःखके आत्यंतिक अभावको मोक्ष कहते हैं। अत्यंत वीतराग हुए बिना मोक्ष नहीं होती। सम्यग्ज्ञानके बिना वीतराग नहीं हो सकते। . सम्यग्दर्शनके बिना ज्ञान असम्यक् कहा जाता है।
वस्तुकी जिस स्वभावसे स्थिति है उस स्वभावसे उस वस्तुकी स्थिति समझनेको सम्यग्ज्ञान कहते हैं।
सम्यग्दर्शनसे प्रतीत आत्मभावसे आचरण करना चारित्र है। ... ... .. ... इन तीनोंकी एकतासे मोक्ष होती है। जीव स्वाभाविक हैं । परमाणु स्वाभाविक है। जीव अनंत है । परमाणु अनंत हैं । जीव और पुद्गलका संयोग अनादि है। जबतक जीवको पुद्गलका संबंध है तबतक जीव कर्मसहित कहा जाता है। भावकर्मका कर्ता जीव है। भावकर्मका दूसरा नाम विभाव कहा जाता है। भावकर्मके कारण जीव पुद्गलको ग्रहण करता है। इससे तैजस आदि शरीर और औदारिक आदि शरीरका संयोग होता है। भावकर्मसे विमुख हो तो निजभाव प्राप्त हो सकता है । सम्यग्दर्शनके बिना जीव वास्तविकरूपसे भावकमसे विमुख नहीं हो सकता। सम्यग्दर्शनके होनेका मुख्य हेतु जिनवचनसे तत्त्वार्थमें प्रतीति होना है।
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___ॐ नमः विश्व अनादि है।
आकाश सर्वव्यापक है। उसमें लोक सन्निविष्ट है। जब चेतनसे सम्पूर्ण लोक भरपूर है।