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७०. पंचास्तिकाय ] विविध पत्र आदि संग्रह-३०वाँ वर्ष
यदि कर्म ही कर्मका कर्ता हो, और आत्मा ही आत्माकी कर्ता हो, तो फिर उस कर्मके फलका भोग कौन करेगा ! और कर्म अपने फलको किसे देगा ! ॥ ५९॥
कर्म अपने स्वभावके अनुसार यथार्थ परिणमन करता है, और जीव अपने स्वभावके अनुसार भावकर्मका कर्ता है ॥ ६०॥
सम्पूर्ण लोक पुद्गल-समूहोंसे-सूक्ष्म और बादर विविध प्रकारके अनंत स्कंधोंसे-अतिशय गादरूपसे भरा हुआ है ॥ ६१ ॥
___आत्मा जिस समय अपने भावकर्मरूप स्वभावको करती है, उस समय वहाँ रहनेवाले पुद्गलपरमाणु अपने स्वभावके कारण द्रव्यकर्मभावको प्राप्त होते हैं, तथा परस्पर एकक्षेत्र अवगाहरूपसे अतिशय गादरूप हो जाते हैं ॥ ६२ ॥ __ कोई कर्ता न होनेपर भी, जिस तरह पुद्गलद्रव्यसे अनेक स्कंधोंकी उत्पत्ति होती है, उसी तरह पुद्गलद्रव्य कर्मरूपसे स्वाभाविकरूपसे ही परिणमन करता है, ऐसा जानना चाहिये ॥ ६३ ॥.
जीव और पुद्गल-समूह परस्पर मजबूतरूपसे संबद्ध हैं। यथाकाल उदय आनेपर उससे जीव सुख-दुःखरूप फलका वेदन करता है ॥ ६४ ॥ ___इस कारण जीव कर्मभावका कर्ता है, और भोक्ता भी वही है । वेदकभावके कारण वह कर्मफलका अनुभव करता है ॥६५॥
___ इस तरह आत्मा अपने भावसे ही कर्ता और भोक्ता होती है । मोहसे चारों ओरसे आच्छादित यह जीव संसारमें परिभ्रमण करता है ॥६६॥
(मिथ्यात्व ) मोहका उपशम होनेसे अथवा क्षय होनेसे, वीतराग-कथित मार्गको प्राप्त धीर शुद्ध ज्ञानाचारवंत जीव निर्वाणपुरीको गमन करता है ॥ ६७॥
एक प्रकारसे, दो प्रकारसे, तीन प्रकारसे, चार गतियोंके भेदसे, पाँच गुणोंकी मुख्यतासे, छह कायके भेदसे, सात भंगोंके उपयोगसे, आठ गुण अथवा आठ कर्मोंके भेदसे, नव तत्त्वोंके भेदसे और दश स्थानकसे जीवका निरूपण किया गया है ॥ ६८-६९॥
प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंधसे सर्वथा मुक्त होनेसे जीव ऊर्ध्वगमन करता है। संसार अथवा कर्मावस्थामें जीव विदिशाको छोड़कर अन्य दिशाओंमें गमन करता है ॥ ७०॥
स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश, और परमाणु इस तरह पुद्गल-अस्तिकायके चार भेद जानने चाहिये ॥ ७१॥
सकल समस्त लक्षणवालेको स्कंध, उसके आधे भागको देश, उसके आधे भागको प्रदेश, और जिसका कोई भाग न हो सके, उसे परमाणु कहते हैं ॥ ७२॥
बादर और सूक्ष्म परिणमनको प्राप्त स्कंधोंमें पूरण ( बढ़ना ) और गलन (कम होना) स्वभाव होनेके कारण परमाणु पुद्गलके नामसे कहा जाता है। उसके छह भेद हैं, उससे त्रैलोक्य उत्पन्न होता है ॥ ७३॥ .. सर्व स्कंधोंका जो सबसे अन्तिम भेद कहा है वह परमाणु है । वह सद, असत्, एक, अविमागी और मर्त होता है ॥ ७॥ . . . . . .