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मरूम है, यह जीवकी निजी कल्पना है, और उस कल्पनाके अनुसार ही उसके वीर्य स्खभाषकी स्वर्ति होती है, अथवा उसके अनुरूप ही उसकी सामर्थ्यका परिणमन होता है, और इस कारया वह दव्यकर्मरूप पुद्गलकी वर्गणाको ग्रहण करता है।
और मुषा समजे नहीं, जीव खाय फळ थाय ।
एम शुभाशुभ कमन, भोक्तापणुं जणाय ।।८३ ॥ जहर और अमृत स्वयं नहीं जानते कि हमें इस जीवको फल देना है, तो मी जो जीव उन्हें खाता है उसे उनका फल मिलता है । इसी तरह शुभ-अशुभ कर्म यचापि यह नहीं जानते कि हमें इस जीवको यह फल देना है, तो भी ग्रहण करनेवाला जीव जहर और अमृतके फलकी तरह कर्मका फल प्राप्त करता है।
जहर और अमृत स्वयं यह नहीं जानते कि हमें खानेवालेको मृत्यु और दीर्घायु मिलती है, परन्तु जैसे उन्हें ग्रहण करनेवालेको स्वभावसे ही उनका फल मिलता है, उसी तरह जीवमें शुभ-अशुभ कर्मका परिणमन होता है, और उसका फल मिलता है। इस तरह जीव कर्मका भोक्ता समझमें आता है।
एक रांकने एक नृप, ए आदि ने भेद ।
कारण बिना न कार्य ते, एज शुभाशुभ वेध ॥ ८॥ एक स्कहै और एक राजा है, इत्यादि प्रकारसे नीचता, उच्चता, कुरूपता, सुरूपता आदि बहुतसी विचित्रतायें देखी जाती है, और इस प्रकारका जो भेद है वह सबको समान नहीं रहता—यही जीवको कर्मका भोक्तृत्व सिद्ध करता है । क्योंकि कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति नहीं होती ॥
यदि उस शुभ-अशुभ कर्मका फल न होता हो तो एक रंक है और एक राजा है इत्यादि जो भेद है, वह न होना चाहिये । क्योंकि जीवत्व और मनुष्यत्व तो सबमें समान है, तो फिर सबको मुख-दुःख भी समान ही होना चाहिये । इसलिये जिसके कारण ऐसी विचित्रतायें मालम होती है, वही शुभाशुभ कर्मसे उत्पन्न हुणा भेद है। क्योंकि कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति नहीं होती । इस तरह शुभ और अशुभ कर्म भोगे जाते हैं।
फळदाता ईपरतणी, एमां नयी जरूर ।
कर्म स्वभावे परिणमे, थाय भोगयी दूर ॥ ८५ ॥ इसमें फलदाता ईयरकी कुछ भी जरूरत नहीं है। जहर और अमृतकी तरह शुभाशुभ कर्मका भी स्वभावसे ही फल मिलता है। और जैसे ज़हर और अमृत निःसल हो जानेपर, फल देनेसे निवृत्त हो जाते हैं। उसी तरह शुभ-अशुभ कर्मके भोग लेनेसे कर्म भी निःसत्व हो जानेसे निवृत्त हो जाते हैं।
ज़हर ज़हररूपसे फल देता है और अमृत अमृतरूपसे फल देता है, उसी तरह अशुभ कर्म अशुभ रूपसे फळ देता है और शुभ कर्म शुभरूपसे फल देता है। इसलिये जीव जैसे जैसे अज्यवसायसे कर्मको ग्रहण करता है, वैसे वैसे विपाकरमसे कर्म भी फल देता है। सा जैसे जहर और मात फल देने के बाद निःसत्व हो जाते हैं, उसी तरह वे कर्म भी मोमले सो जाते हैं।