________________
६९.] विविध पत्र आदि संग्रह-३०याँ वर्ष
६३३ १३. प्रदेशका संकोच-विकास. १४. उससे घनत्व या सूक्ष्मत्व. १५. अस्पर्शगति. १६. एक ही समयमें यहाँ और सिद्धक्षेत्रमें अस्तित्व, अथवा उसी समयमें लोकांत-गमन. १७. सिद्धसंबंधी अवगाह.
१८. जीवकी तथा दृश्य पदार्थकी अपेक्षासे अवधि मनःपर्यव और केवलज्ञानकी कुछ व्यावहारिक पारमार्थिक व्याख्या.
'उसी प्रकारसे मति-श्रुतकी भी व्याख्या.'
१९. केवलज्ञानकी कोई अन्य व्याख्या. . २०. क्षेत्रप्रमाणकी कोई अन्य व्याख्या.
२१. समस्त विश्वका एक अद्वैततत्त्वपर विचार. २२. केवलज्ञानके बिना किसी अन्य ज्ञानसे जीवके स्वरूपका प्रत्यक्षरूपसे ग्रहण. २३. विभावका उपादान कारण. २४. तथा उसका समाधानके योग्य कोई प्रकार. २५. इस कालमें दस बोलोंके व्यवच्छेद होनेका कोई अन्य रहस्य. २६. केवलज्ञानके दो भेदः--बीजभूत केवलज्ञान और सम्पूर्ण केवलज्ञान. २७. वीर्य आदि आत्माके गुणोंमें चेतनता. २८. ज्ञानसे आत्माकी भिन्नता. २९. वर्तमानकालमें जीवके स्पष्ट अनुभव होनेके ध्यानके मुख्य भेद. ३०. उनमें भी सर्वोत्कृष्ट मुख्य भेद. ३१. अतिशयका स्वरूप. ३२. ( बहुतसी ) लब्धियाँ ऐसी मानी जाती हैं जो अद्वैततत्व माननेसे सिद्ध होती हैं. ३३. लोक-दर्शनका वर्तमानकालमें कोई सुगम मार्ग. ३४. देहान्त-दर्शनका वर्तमानकालमें सुगम मार्ग. ३५. सिद्धव-पर्याय सादि-अनंत, मोक्ष अनादि-अनंत.
३६. परिणामी पदार्थ यदि निरंतर स्त्राकार परिणामी हो तो भी उसका अव्यवस्थित परिणामीपना तथा जो अनादिसे हो वह केवलज्ञानमें भासमान हो-ये पदार्थमें किस तरह घट सकते हैं !
१. कर्मव्यवस्था. २. सर्वज्ञता. ३. पारिणामिकता. १. नाना प्रकारके विचार और समाधान.