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श्रीमदराजचन्द्र
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अध्यवसायः-लेश्या-परिणामकी कुछ स्पष्टरूपसे प्रवृत्ति । संकल्पः-प्रवृत्ति करनेका कुछ निर्धारित अध्यवसाय । विकल्पः-प्रवृत्ति करनेका कुछ अपूर्ण, अनिर्धारित, संदेहात्मक अध्यवसाय । संज्ञाः-आगे पीछेकी कुछ विशेष चितवनशक्ति अथवा स्मृति ।
परिणामः-जलके द्रवण स्वभावकी तरह द्रव्यकी कथंचित् अवस्थांतर पानेकी जो शाक्ति है उस अवस्थांतरकी विशेष धारा-वह परिणति ।।
अज्ञान:--मिथ्यात्वसहित मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान ।। विभंगज्ञानः-मिथ्यात्वसहित अतीन्द्रिय ज्ञान । विज्ञान:-कुछ विशेष ज्ञान ।
(२)
शुद्ध चैतन्य. शुद्ध चैतन्य. शुद्ध चैतन्य. सद्भावकी प्रतीति-सम्यग्दर्शन.
शुद्धात्मपद. ज्ञानकी सीमा कौनसी है ! निरावरण ज्ञानकी क्या स्थिति है ! क्या अद्वैत एकांतसे घटता है ! ध्यान और अध्ययन ।
उ० अप० (३)
जैनमार्ग १. लोक-संस्थान. २. धर्म, अधर्म, आकाश द्रव्य. ३. अरूपित्व. ४. सुषम दुषमादि काल. ५. उस उस कालमें भारत आदिकी स्थिति, मनुष्यकी ऊंचाई आदिका प्रमाण । ६. सूक्ष्म निगोद. ७. दो प्रकारके जीव:-भव्य और अमन्य. ८. पारिणामिक भावसे विभाव दशा. ९. प्रदेश और समय-उसका कुछ व्यावहारिक पारमार्थिक स्वरूप. १०. गुण-समुदायसे द्रव्यका भिन्नत्व. ११. प्रदेश-समुदायका वस्तुत्व. १२. रूप, रस, गंध और स्पर्शसे परमाणुकी मिन्नता.