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आत्मसिद्धि . बंधको रोकना है, वह अकर्म-दशाका मार्ग है । यह मार्ग परलोकमें नहीं परन्तु यही अनुभवमें आता है, तो इसमें फिर क्या संदेह करना !
छोडी मत दर्शन तणो, आग्रह तेम विकल्प ।
कसो मार्ग आ साधशे, जन्म तेहना अल्प ॥ १०५॥ यह मेरा मत है, इसलिये मुझे इसी मतमें लगे रहना चाहिये; अथवा यह मेरा दर्शन है, इसलिये चाहे जिस तरह भी हो मुझे उसीकी सिद्धि करनी चाहिये-इस आग्रह अथवा विकल्पको छोड़कर, ऊपर कहे हुए मार्गका जो साधन करेगा, उसके अल्प ही भव बाकी समझने चाहिये ।।
यहाँ 'जन्म' शब्दका जो बहुवचनमें प्रयोग किया है, वह यही बतानेके लिये किया है कि कचित् वे साधन अधूरे रहे हों अथवा उनका जघन्य या मध्यम परिणामोंसे आराधन हुआ हो, तो समस्त कर्मोका क्षय न हो सकनेसे दूसरा जन्म होना संभव है, परन्तु वे जन्म बहुत नहीं-बहुत ही थोड़े होंगे । इसलिये 'समकित होनेके पश्चात् यदि बादमें जीव उसे वमन न करे, तो अधिकसे अधिक उसके पन्दरह भव होते हैं, ऐसा जिनभगवान्ने कहा है'; तथा ' जो उत्कृष्टतासे उसका आराधन करे उसकी उसी भवमें मोक्ष हो जाती है'–यहाँ इन दोनों बातोंमें विरोध नहीं है।
. षट्पदना परश्न तें, पूछयां करी विचार ।
ते पदनी सवोगता, मोक्षमार्ग निरधार ॥१०६ ॥ हे शिष्य ! तूने जो विचार कर छह पदके छह प्रश्नोंको पूँछा है, सो उन पदोंकी सर्वांगतामें ही मोक्षमार्ग है, ऐसा निश्चय कर । अर्थात् इनमेंके किसी भी पदको एकांतसे अथवा अविचारसे उत्थापन करनेसे मोक्षमार्ग सिद्ध नहीं होता ।
जाति वेषनो भेद नहीं, को मार्ग जो होय ।
साधे ते मुक्ति लहे, एमां भेद न कोय ॥ १०७॥ जो मोक्षका मार्ग कहा है, यदि वह मार्ग हो, तो चाहे किसी भी जाति अथवा वेषसे मोक्ष हो सकती है, इसमें कुछ भी भेद नहीं । जो उसकी साधना करता है, वह मुक्ति-पदको पाता है । तथा उस मोक्षमें दूसरे किसी भी प्रकारका ऊँच-नीच आदि भेद नहीं है । अथवा यह जो वचन कहा है उसमें दूसरा कोई भेद-फेर-फार नहीं है ।
कषायनी उपशांतता, मात्र मोक्ष-अभिलाष ।
भवे खेद अंतर दया, ते कहिये जिज्ञास ॥ १०८॥ क्रोध आदि कषाय जिसकी मन्द हो गई है, आत्मामें केवल मोक्ष होनेके सिवाय जिसकी दूसरी कोई भी इच्छा नहीं, और संसारके भोगोंके प्रति जिसे उदासीनता रहती है, तथा अंतरंगमें प्राणियोंके ऊपर जिसे दया रहती है, उस जीवको मोक्षमार्गका जिज्ञासु कहते हैं, अर्थात् वह जीव मार्गको प्राप्त करने योग्य है।
ते जिज्ञासु जीवने, थाय सदरुषोष ।। .तो. पामे समकीतने, वर्षे अंतशोध ॥ १०९ ॥.
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