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भीमद् राजचन्द्र
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राग देष अज्ञान ए, मुख्य कर्मनी अंथ।
थाय निवृत्ति जेहयी, तेज मोसनो पंथ ॥१०॥ राग द्वेष और अज्ञानकी एकता ही कर्मको मुख्य गाँठ है। इसके बिना कर्मका बंध नहीं होता। उसकी निवृत्ति जिससे हो वही मोक्षका मार्ग है।
आत्मा सत् चैतन्यमय, सर्वाभासरहित ।
. जेथी केवळ पामिये, मोक्षपंथ ते रीत ॥ १०१ ॥ 'सत्'–अविनाशी, 'चैतन्यमय'- सर्वभावको प्रकाश करनेरूप स्वभावमय—अर्थात् अन्य सर्वविभाव और देह आदिके संयोगके आभाससे रहित, तथा • केवल'-शुद्ध आत्माको प्राप्त करना, उसकी प्राप्तिके लिये प्रवृत्ति करना, वही मोक्षका मार्ग है।
कर्म अनंत प्रकारना, तेमा मुख्ये आठ ।
तेमा मुख्ये मोहिनीय, हणाय ते कहुं पाठ॥१०२॥ कर्म अनंत प्रकारके हैं, परन्तु उनमें ज्ञानावरण आदि मुख्य आठ भेद होते हैं । उसमें भी मुख्य कर्म मोहनीय कर्म है। जिससे वह मोहनीय कर्म नाश किया जाय उसका उपाय कहता हूँ।
कर्म मोहनीय भेद बे, दर्शन चारित्र नाम ।
हणे बोध वीतरागता, अचूक उपाय आम ॥१०३॥ उस मोहनीय कर्मके दो भेद हैं:-एक दर्शनमोहनीय और दूसरा चारित्रमोहनीय। परमार्थमें अपरमार्थ बुद्धि और अपरमार्थमें परमार्थबुद्धिको दर्शनमोहनीय कहते है और तथारूप परमार्थको परमार्य जानकर आत्मस्वभावमें जो स्थिरता हो, उस स्थिरताको निरोध करनेवाले पूर्व संस्काररूप कषाय और नोकषायको चारित्रमोहनीय कहते हैं। __आत्मबोध दर्शनमोहनीयका और वीतरागता चारित्रमोहनीयका नाश करते हैं। ये उसके अचूक उपाय हैं । क्योंकि मिथ्याबोध दर्शनमोहनीय है, और उसका प्रतिपक्ष सत्य-आत्मबोध है; तथा चारित्रमोहनीय जो राग आदि परिणामरूप है, उसका प्रतिपक्ष वीतरागभाव है। अर्थात् जिस तरह प्रकाशके होनेसे अंधकार नष्ट हो जाता है-वह उसका अचूक उपाय है-उसी तरह बोध और वीतरागता अनुक्रमसे दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयरूप अंधकारके दूर करनेमें प्रकाश खरूप हैं; इसलिये वे उसके अचूक उपाय है।
कर्मबंध क्रोधादियी, हणे क्षमादिक तेह।
प्रत्यक्ष अनुभव सर्वने, एमां शो सन्देह ॥ १०४ ॥ क्रोध आदि भावसे कर्मबंध होता है, और क्षमा आदि भावसे उसका नाश हो जाता है। अर्थात् क्षमा रखनेसे क्रोध रोका जा सकता है, सरलतासे माया रोकी जा सकती है, संतोषसे लोम रोका जा सकता है । इसी तरह रति अरति आदिके प्रतिपक्षसे वे सब दोष रोके जा सकते हैं। वही कर्म-बंधका निरोध है; और वही उसकी निवृत्ति है। तथा इस बातका सबको प्रत्यक्ष अनुभव है, अथवा उसका सबको प्रत्यक्ष अनुभव हो सकता है । क्रोध आदि रोकनेसे रुक जाते है, और जो कर्मके