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मात्मसिदि आचारांगसूत्रमें कहा है:
प्रथम श्रुतस्कंध, प्रथम अध्ययनके प्रथम उद्देशका यह प्रथम वाक्य है ............ । क्या यह जीव पूर्वसे आया है, पश्चिमसे आया है, उत्तरसे आया है, दक्षिणसे आया है, ऊँचेसे आया है, या नीचेसे आया है, अथवा किसी दूसरी ही दिशासे आया है ! जो यह नहीं जानता वह मिथ्यादृष्टि है; जो जानता है वह सम्यग्दृष्टि है । इसके जाननेके निम्न तीन कारण है:
(१) तीर्थकरका उपदेश,
(२) सद्गु का उपदेश, और (३) जातिस्मरण ज्ञान ।।
यहाँ जो जातिस्मरण ज्ञान कहा है वह भी पूर्वके उपदेशके संयोगसे ही कहा है, अर्थात् पूर्वमें उसे बोध होनेमें सद्गुरुकी असंभावना मानना योग्य नहीं। तथा जगह जगह जिनागममें ऐसा कहा है:
गुरुणी छंदाणुं वत्त-गुरुकी आज्ञानुसार चलना चाहिये। गुरुकी आज्ञानुसार चलनेसे अनंत जीव सिद्ध हो गये हैं, सिद्ध होते हैं और सिद्ध होंगे ।तथा किसी जीवने जो अपने विचारसे बोध प्राप्त किया है, उसमें भी प्रायः पूर्वमें सद्गुरुका उपदेश ही कारण होता है । परन्तु कदाचित् जहाँ वैसा न हो वहाँ भी उस सद्गुरुका नित्य अभिलाषी रहते हुए, सद्विचारमें प्रेरित होते हुए ही, उसने स्वविचारसे आत्मज्ञान प्राप्त किया है, ऐसा कहना चाहिये । अथवा उसे किसी सद्गुरुकी उपेक्षा नहीं है, और जहाँ सद्गुरुकी उपेक्षा रहती है, वहाँ मान होना संभव है; और जहाँ सद्गुरुके प्रति मान हो वहीं कल्याण होना कहा है, अर्थात् उसे सद्विचारके प्रेरित करनेका आत्मगुण कहा है।
उस तरहका मान आत्मगुणका अवश्य घातक है। बाहुबलिजीमें अनेक गुण विद्यमान होते हुए भी 'अपनेसे छोटे अहानवे भाईयोंको वंदन करनेमें अपनी लघुता होगी, इसलिये यहीं ध्यानमें स्थित हो जाना ठीक है'-ऐसा सोचकर एक वर्षतक निराहाररूपसे अनेक गुणसमुदायसे वे ध्यानमें अवस्थित रहे, तो भी उन्हें आत्मज्ञान नहीं हुआ। बाकी दूसरी हरेक प्रकारकी योग्यता होनेपर भी एक इस मानके ही कारण ही वह ज्ञान रुका हुआ था। जिस समय श्रीऋषभदेवसे प्रेरित ब्राह्मी और सुंदरी सतियोंने उन्हें उस दोषको निवेदन किया और उन्हें उस दोषका भान हुआ, तथा उस दोषकी उपेक्षा कर उन्होंने उसकी असारता समझी, उसी समय उन्हें केवलज्ञान हो गया। वह मान ही यहाँ चार घनघाती कर्मोंका मूल हो रहा था। तथा बारह बारह महीनेतक निराहाररूपसे, एक लक्षसे, एक आसनसे,
आत्मविचारमें रहनेवाले ऐसे पुरुषको इतनेसे मानने उस तरहकी बारह महीनेकी दशाको सफल न होने दिया, अर्थात् उस दशासे भी मान समझमें न आया; और जब सद्गुरु श्रीऋषभदेवने सूचना की कि 'वह मान है', तो वह मान एक मुहूर्तमें ही नष्ट हो गया। यह भी सद्गुरुका ही माहात्म्य बताया है। ___तथा सम्पूर्ण मार्ग ज्ञानीकी ही आज्ञामें समाविष्ट हो जाता है, ऐसा बारंबार कहा है। आचारांगसूत्रमें कहा है कि ............ । सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामीको उपदेश करते हैं कि समस्त जगत्का जिसने दर्शन किया है, ऐसे महावीरभगवान्ने हमें इस तरह कहा है। गुरुके आधीन होकर चलनेवाले ऐसे अनन्त पुरुष मार्ग पाकर मोक्ष चले गये हैं।
उत्तराध्ययन, सूयगडांग आदि में जगह जगह यही कहा है।