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....... भीमद् राजचन्द्र [६५७, ६५८, ६५६
(२) जिनके अनुसारआत्मा असंख्यात प्रदेशी, संकोच-विकासकी भाजन, अरूपी, लोकप्रमाण प्रदेशात्मक है।
६५८ जिनमध्यम परिमाणकी नित्यता, क्रोध आदिका पारिणामिक भाव (१)ये आत्मामें किस तरह घटते हैं ! कर्म बंधकी हेतु आत्मा है ! पुद्गल है ! या दोनों हैं ! अथवा इससे भी कोई भिन्न प्रकार है ! मुक्तिमें आत्मा घन-प्रदेश किस तरह है ! द्रव्यकी गुणसे भिन्नता किस तरह है! . समस्त गुण मिलकर एक द्रव्य होता है, या उसके बिना द्रव्यका कुछ दूसरा ही विशेष स्वरूप है! सर्व द्रव्यके वस्तुत्व गुणको निकाल कर विचार करें तो वह एक है या किसी दूसरी तरह !
आमा गुणी है, ज्ञान गुण है, यह कहनेसे आत्माका कथंचित् ज्ञान-रहितपना ठीक है या नहीं ! यदि आत्मामें ज्ञान-रहितपना स्वीकार करें तो वह जड़ हो जायगी।
__उसमें यदि चारित्र वीर्य आदि गुण मानें तो उसकी ज्ञानसे भिन्नता होनेसे वह जड़ हो जायगी, उसका समाधान किस तरह करना चाहिये !
अभव्यत्व पारिणामिक भावमें किस तरह घट सकता है ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और जीवको द्रव्य-दृष्टिसे देखें तो वह एक वस्तु है या नहीं ! द्रव्यस्व क्या है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशका विशेष स्वरूप किस तरह प्रतिपादित हो सकता है !
लोक असंख्य प्रदेशी है, और द्वीप समुद्र असंख्यातों हैं, इत्यादि विरोधका किस तरह समाधान हो सकता है!
आत्मामें पारिणामिकता किस तरह है ! मुक्तिमें भी सब पदार्थोका ज्ञान किस तरह होता है.! अनादि-अनंतका ज्ञान किस तरह हो सकता है!
६५९ बेदान्तएक आत्मा, अनादि माया, बंध-मोक्षका प्रतिपादन, यह जो तुम कहते हो वह नहीं घट सकता। आनन्द और चैतन्यमें श्रीकपिलदेवजीने जो विरोध कहा है उसका क्या समाधान है!. उसका यथायोग्य समाधान वेदान्तमें देखनेमें नहीं आता।
आत्माको नाना माने बिना बंध-मोक्ष हो ही नहीं सकता । और वह है तो ज़रूर, ऐसा होनेपर भी उसे कल्पित कहनेसे उपदेश आदि कार्य करने योग्य नहीं ठहरता ।