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श्रीमद् राजचन्द्र [पत्र २१२, २१३, २१४ जैसी अपनी योग्यता है, वैसी योग्यता रखनेवाले पुरुषोंके संगको ही सत्संग कहते हैं। अपनेसे बड़े पुरुषके संगके निवासको हम परम सत्संग कहते हैं, क्योंकि इसके समान कोई हितकारक साधन इस जगत्में हमने न देखा है और न सुना है।
पूर्ववर्ती महान् पुरुषोंका चितवन करना यद्यपि कल्याणकारक है, तथापि वह स्वरूप-स्थितिका कारण नहीं हो सकता; क्योंकि जीवको क्या करना चाहिये-यह बात उनके स्मरण करने मात्रसे समझमें नहीं आती । प्रत्यक्ष संयोग होनेपर बिना समझाये भी स्वरूप-स्थिति होनी हमें संभव लगती है, और उससे यही निश्चय होता है कि उस योगका और उस प्रत्यक्ष चितवनका फल मोक्ष होता है; क्योंकि सत् पुरुष ही मूर्तिमान मोक्ष है।
___ मोक्षगत (अहंत आदि) पुरुषका चितवन बहुत कालसे भावानुसार मोक्ष आदि फलका देनेवाला होता है।
. सम्यक्त्वप्राप्त पुरुषका निश्चय होनेपर और योग्यताके कारणसे जीव सम्यक्त्व पाता है ।
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बम्बई, ज्येष्ठ सुदी १५ रवि. १९४७.
जीव भक्तिकी पूर्णता पानेके योग्य तभी होता है जब कि वह एक तृण मात्र भी हरिसे नहीं माँगता, और सब दशाओंमें भक्तिमय ही रहता है।
व्यवहार-चिन्ताओंसे अरुचि होनेपर सत्संगके अभावमें किसी भी प्रकारसे शान्ति नहीं होती, ऐसा जो आपने लिखा सो ठीक ही है, तो भी व्यावहारिक चिन्ताओंकी अरुचि करना उचित नहीं है।
सर्वत्र हरि इच्छा बलवान है; यह बतानेके लिये ही हरिने ऐसा किया है, ऐसा निस्सन्देह समझना; इसलिये जो कुछ भी हो उसे देखे जाओ, और फिर यदि उससे अरुचि पैदा हो तो देख लेंगे । अब जब कभी समागम होगा तब इस विषयमें हम बातचीत करेंगे । अरुचि मत करना । हम तो इसी मार्गसे पार हुए हैं।
छोटम ज्ञानी पुरुष थे। उनके पदकी रचना बहुत श्रेष्ठ है । 'साकाररूपसे हरिकी प्रगट प्राप्ति' इसी शब्दको मैं प्रायः 'प्रत्यक्षदर्शन' लिखता हूँ।
२१३ बम्बई, ज्येष्ठ वदी ६ शनि. १९४७. हरि-इच्छासे जीना है, और पर इच्छासे चलना है । अधिक क्या कहें !
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बम्बई, ज्येष्ठ १९४७ हालमें छोटमकृत पद-संग्रह वगैरह पुस्तकें बाँचनेका परिचय रखना । वगैरह शब्दसे ऐसी पुस्तकें समझना जिनमें सत्संग, भक्ति, और वतिरागताके माहात्म्यका वर्णन किया हो। . .. .