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पत्र २२७]
विविध पत्र आदि संग्रह-२४वाँ वर्ष
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रालज, भाद्रपद १९४७. (१) हे सब भन्यो ! सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा हैजिसने नव-पूर्वोको भी पढ़ लिया, परन्तु यदि उसने जीवको नहीं पहिचाना, तो यह सब अज्ञान ही कहा गया है। इसमें आगम साक्षी है । ये समस्त पूर्व जीवको विशेषरूपसे निर्मल बनानेके लिये कहे गये हैं । हे सब भन्यो ! सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा है ॥ १॥
__ ज्ञानको किसी ग्रंथमें नहीं बताया; कविकी चतुराईको भी ज्ञान नहीं कहा; मंत्र-तंत्रोंको भी ज्ञान नहीं बताया; ज्ञान कोई भाषा भी नहीं है; ज्ञानको किसी दूसरे स्थानमें नहीं कहा-ज्ञानको ज्ञानार्म ही देखो । हे सब भन्यो ! सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा है ॥२॥
जबतक ' यह जीव है ' और ' यह देह है ' इस प्रकारका भेद मालूम नहीं पड़ा, तबतक पञ्चक्खाण करनेपर भी उसे मोक्षका हेतु नहीं कहा । यह सर्वथा निर्मल उपदेश पाँचवें अंगमें कहा गया है। हे सब भन्यो । सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा है ॥३॥
___ न केवल ब्रह्मचर्यसे, और न केवल संयमसे ही ज्ञान पहिचाना जाता है; परन्तु ज्ञानको केवल ज्ञानसे ही पहिचानो । हे सब भव्यो ! सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा है ॥ ४ ॥
विशेष शास्त्रोंको जाने या न जाने, किन्तु उसके साथ अपने स्वरूपका ज्ञान करना अथवा वैसा विश्वास करना, इसे ही ज्ञान कहा गया है । इसके लिये सन्मति आदि ग्रन्थ देखो । हे सब भव्यो ! सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा है ॥ ५॥
यदि ज्ञानीके परमार्थसे आठ समितियोंको जान लिया, तो ही उसे मोक्षार्थका कारण होनेसे ज्ञान कहा गया है; केवल अपनी कल्पनाके बलसे करोड़ों शास्त्र रच देना, यह केवल मनका अहंकार ही है । हे सब भव्यो ! सुनो, जिनवरने इसे ही ज्ञान कहा है ॥ ६ ॥
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जिनवर कहे छे शान तेने, सर्व भन्यो सांभळोजो होय पूर्व भणेल नव पण, जीवने जाण्यो नहीं, तो सर्व ते अज्ञान भाल्यु, साक्षी छे आगम अहीं; ए पूर्व सर्व कह्या विशेषे, जीव करवा निर्मळो, जिनवर कहे छे शान तेने, सर्व भव्यो सांभळो ॥१॥ नहिं ग्रंथ मांहि शान भाख्यु, शान नहिं कवि-चातुरी, नहिं मंत्र तंत्रो शान दाख्यां, शान नहिं भाषा ठरी; नहिं अन्य स्थाने शान भाख्यु, शान शानीमां कळो, जिनवर कहे छे शान तेने, सर्व भव्यो सांभळो ॥ २॥ आ जीव अने आ देह एवो, भेद जो भास्यो नहीं, पचखाण कीयां त्यां सुधी, मोक्षार्थ ते भाख्यां नहीं; ए पांचमे अंगे करो, उपदेश केवळ निर्मळो, जिनवर कहे छे शान तेने, सर्व भव्यो सांभळो ॥ ३ ॥ केवळ नहिं ब्रह्मचर्यथी, केवळ नहिं संयमथकी, पण शान केवळयी कळो, जिनवर कहे के ज्ञान तेने, सर्व भन्यो समिळो ॥४॥ शास्त्रो विशेष सहीत पण जो, जाणियुं निजरूपने, कां तेहवो आभय, करजो, भावयी सांचा मने, तो ज्ञान तेने भाखियुं, जो सम्मति आदि स्थळो, जिनवर कहे छे शान तेने, सर्व भव्यो सांभळो ॥ ५॥ आठ समिति जाणीए जो, शानीना परमार्ययी; तो शान माख्युं तेहने, अनुसार ते मोक्षार्ययी; निज कल्पनायी कोटि शास्त्रो, मात्र मननो आमळो, जिनवर कडे के शान तेने सर्व भन्यो सामळो ॥ ६ ॥