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श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र २७८ इस देहको धारण करके यधपि कोई महान् श्रीमंतता नहीं भोगी, शब्द आदि विषयोंका पूरा वैभव प्राप्त नहीं हुआ, कोई विशेष राज्याधिकार सहित दिन नहीं बिताये, अपने निजके गिने जानेवाले ऐसे किसी धाम-आरामका सेवन नहीं किया, और अभी हालमें तो युवावस्थाका पहिला भाग ही चालू है, तथापि इनमेंसे किसीकी हमें आत्मभावसे कोई इच्छा उत्पन्न नहीं होती, यह एक बड़ा आश्चर्य मानकर प्रवृत्ति करते हैं । और इन पदार्थोकी प्राप्ति-अप्राप्ति दोनों समान जानकर बहुत प्रकारसे अविकल्प समाधिका ही अनुभव करते हैं।
ऐसा होनेपर भी बारम्बार वनवासकी याद आया करती है। किसी भी प्रकारका लोक-परिचय रुचिकर नहीं लगता; सत्संगकी ही निरंतर कामना रहा करती है; और हम अव्यस्थित दशासे उपाधियोगमें रहते हैं। • एक अविकल्प समाधिके सिवाय दूसरा कुछ वास्तविक रीतिसे स्मरण नहीं रहता, चिंतन नहीं रहता, रुचि नहीं रहती, अथवा कोई भी काम नहीं किया जाता।
ज्योतिष आदि विद्या अथवा अणिमा आदि सिद्धिको मायिक पदार्थ जानकर आत्माको इनका कचित् ही स्मरण होता है। इनके द्वारा कोई बात जानना अथवा सिद्ध करना कभी भी योग्य मालूम नहीं होता, और इस बातमें किसी प्रकारसे हालमें चित्तका प्रवेश भी नहीं रहा।
- पूर्वनिबंधन जिस जिस प्रकारसे उदय आये, उस उस प्रकारसे ००० अनुक्रमसे वेदन करते जाना, ऐसा करना ही योग्य लगा है।
तुम भी, ऐसे अनुक्रममें भले ही थोडेसे थोड़े अंशमें ही प्रवृत्त क्यों न हुआ जाय, तो भी प्रवृत्ति करनेका अभ्यास रखना; और किसी भी कामके प्रसंगमें अधिक शोकमें पड़ जानेका अभ्यास कम करना; ऐसा करना अथवा होना यही ज्ञानीकी अवस्थामें प्रवेश करनेका द्वार है।
तुम किसी भी प्रकारका उपाधिका प्रसंग लिखते हो, वह यद्यपि बाँचने में तो आता ही है, तथापि उस विषयका चित्तमें जरा भी आभास न पड़नेके कारण प्रायः उत्तर लिखना भी नहीं बनता; इसे आप चाहे दोष कहो या गुण, परन्तु वह क्षमा करने योग्य है।
___ हमें भी सांसारिक उपाधि कोई कम नहीं है; तथापि उसमें निजपना नहीं रह जानेके कारण उससे घबराहट पैदा नहीं होती। उस उपाधिके उदय-कालके कारण हालमें समाधिका अस्तित्व गौणसा हो रहा है और उसके लिये शोक रहा करता है। वीतरागभावका यथायोग्य.
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- बम्बई, माघ. १९४८ दीर्घकालतक यथार्थ-बोधका परिचय होनेसे बोध-बीजकी प्राप्ति होती है, और यह बोध-बीज प्रायः निश्चय सम्यक्त्व ही होता है।
जिनभगवान्ने जो बाईस प्रकारके परिषह कहे हैं उनमें : दर्शन' परिषह नामका भी एक परिषह कहा गया है। इन दोनों परिषहोंका विचार. करना योग्य है । यह विचार करनेकी