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. भीमद् राजवन्द्र [पत्र ५९१, ५९२, ५९३ स्थितिमें जो कुछ जाना जा सके, वह केवलज्ञान है; और वह संदेह करने योग्य नहीं है । श्रीइंगर जो एकान्त कोटी कहते हैं, वह भी महावीरस्वामीके समीपमें रहनेवाले आज्ञावर्ती पाँचसौ केवली जैसोंके प्रसंगमें ही होना संभव है। जगत्के ज्ञानका लक्ष छोड़कर जो शुद्ध आत्मज्ञान है, वही केवलज्ञान है-ऐसा विचार करते हुए आत्मदशा विशेषभावका सेवन करती है "-इस तरह इस प्रश्नके समाधानका संक्षिप्त आशय है।
जैसे बने वैसे जगतके ज्ञानका विचार छोड़कर जिस तरह स्वरूपज्ञान हो, वैसे केवलज्ञानका विचार होनेके लिये पुरुषार्थ करना चाहिये । जगत्के ज्ञान होनेको मुख्यार्थरूपसे केवलज्ञान मानना योग्य नहीं। जगत्के जीवोंका विशेष लक्ष होनेके लिये बारम्बार जगत्के ज्ञानको साथमें लिया है, और वह कुछ कल्पित है, यह बात नहीं है । परन्तु उसके प्रति अभिनिवेश करना योग्य नहीं है। इस स्थलपर विशेष लिखनेकी इच्छा होती है और उसे रोकनी पड़ती है, तो भी संक्षेपमें फिरसे लिखते हैं।
आत्मा से सब प्रकारका अन्य अध्यास दूर होकर स्फटिककी तरह आत्मा अत्यंत शुद्धताका सेवन करे–यही केवलज्ञान है, और बारम्बार उसे जिनागममें जगत्के ज्ञानरूपसे कहा है; उस माहात्म्यसे बाह्यदृष्टि जीव पुरुषार्थमें प्रवृत्ति करें, यही उसका हेतु है।
५९१ बम्बई चैत्र वदी ७ रवि. १९५२ सत्समागमके अभावके अवसरपर तो विशेष करके आरंभ परिग्रहसे वृत्ति न्यून करनेका अभ्यास रखकर जिनमें त्याग-वैराग्य आदि परमार्थ-साधनका उपदेश किया है, वैसे ग्रंथ बाँचनेका परिचय करना चाहिये, और अप्रमत्तभावसे अपने दोषोंका बारम्बार देखना ही योग्य है ।
५९२ बम्बई, चैत्र वदी १४ रवि. १९५२ अन्य पुरुषकी दृष्टिम, जग व्यवहार लखाय । वृंदावन जब जग नहीं, को व्यवहार बताय?
-विहार वृंदावन.
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बम्बई, वैशाख सुदी १ भौम. १९५२
करनेके प्रति वृत्ति नहीं है, अथवा एक क्षण भर भी जिसे करना भासित नहीं होता, और करनेसे उत्पन्न होनेवाले फलके प्रति जिसकी उदासीनता है, वैसा कोई आप्त पुरुष तथारूप प्रारब्ध-योगसे परिग्रह संयोग आदिमें प्रवृत्ति करता हुआ देखा जाता हो, और जिस तरह इच्छुक पुरुष प्रवृत्ति करे, उद्यम करे, वैसे कार्यसहित बर्ताव करते हुए देखने में आता हो, तो उस पुरुषमें ज्ञान-दशा है, यह किस तरह जाना जा सकता है ? अर्थात् वह पुरुष आप्त-परमार्थके लिये प्रतीति करने योग्य है अथवा ज्ञानी है, यह किस लक्षणसे पहिचाना जा सकता है ! कदाचित् किसी मुमुक्षुको दूसरे किसी पुरुषके संत्सयोगसे