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श्रीमद् राजचन्द्र
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मालूम होता है कि मानो कोई कुत्ता ही चला आ रहा है। उसी तरह पौद्गलिक-संयोगको ज्ञानी समझता है । राज्यके मिलनेपर आनंद होता हो तो वह अज्ञान है।
ज्ञानीकी दशा बहुत ही अद्भुत है । याथातथ्य कल्याण जो समझमें आया नहीं, उसका कारणः वचनको आवरण करनेवाला दुराग्रहभाव-कषाय है । दुराग्रहभावके कारण, मिथ्यात्व क्या है वह समझमें आता नहीं । दुराग्रहको छोड़ दें तो मिथ्यात्व दूर भागने लगे । कल्याणको अकल्याण और अकल्याणको कल्याण समझ लेना मिथ्यात्व है । दुराग्रह आदि भावके कारण जीवको कल्याणका स्वरूप बतानेपर भी समझमें आता नहीं। कषाय दुराग्रह आदिको छोड़ा न जाय तो फिर वह विशेष प्रकारसे पीड़ा देता है । कषाय सत्तारूपसे मौजूद रहती है, और जब निमित्त आता है तब वह खड़ी हो जाती है, तबतक खड़ी होती नहीं।
प्रश्न:-क्या विचार करनेसे समभाव आता है ! - उत्तरः-विचारवानको पुद्गलमें तन्मयता-तादात्म्यभाव होता नहीं । अज्ञानी यदि पौगलिकसंयोगके हर्षका पत्र बाँचे, तो उसका चेहरा प्रसन्न दिखाई देने लगता है, और यदि भयका पत्र बाँचे तो उदास हो जाता है। .
सर्प देखकर जब आत्मवृत्तिमें भयका कारण उपस्थित हो उस समय तादात्म्यभाव कहा जाता है। जिसे तन्मयता हो उसे ही हर्ष-शोक होता है। जो निमित्त है वह अपना कार्य किये बिना नहीं रहता।
मिथ्यादृष्टिके मध्यमें साक्षी (ज्ञानरूपी) नहीं है।
देह और आत्मा दोनों भिन्न भिन्न हैं, ऐसा ज्ञानीको भेद हुआ है। ज्ञानीके मध्यमें साक्षी है । ज्ञान, यदि जागृति हो तो ज्ञानके वेगसे, जो जो निमित्त मिलें उन्हें पीछे हटा सकता है।
जीव, जब विभाव परिणाममें रहे उसी समय कर्म बाँधता है, और जब स्वभाव परिणाममें रहे उस समय कर्म बाँधता नहीं। ___ स्वच्छंद दूर हो तो ही मोक्ष होती है । सद्गुरुकी आज्ञाके बिना आत्मार्थी जीवके श्वासोच्छ्वासके सिवाय दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता, ऐसी जिनभगवान्की आज्ञा है।
प्रश्नः-पाँच इन्द्रियाँ किस तरह वश होती हैं !
उत्तरः-पदार्थोके ऊपर तुच्छभाव लानेसे । फलोंके सुखानेसे उनकी सुगंधि थोड़े ही समयतक रहकर नाश हो जाती है, छल कुम्हला जाता है, और उससे कुछ संतोष होता नहीं । उसी तरह तुच्छ भाव आनेसे इन्द्रियोंके विषयमें लुब्धता होती नहीं।
पाँच इन्द्रियोंमें जिह्वा इन्द्रियके वश करनेसे बाकीकी चार इन्द्रियाँ सहज ही वश हो जाती हैं।
प्रश्नः-शिष्यने ज्ञानी-पुरुषसे प्रश्न किया कि 'बारह उपांग तो बहुत गहन हैं, और इससे वे मेरी समझमें नहीं आ सकते; इसलिये कृपा करके बारह अंगोंका सार ही बताइये कि जिसके. अनुसार आचरण करूँ तो मेरा कल्याण हो जाय ।'
* इसका आशय श्रीमद् गनचन्द्रकी गुजराती आवृत्तिके फुटनोटमै, संशोधक मनसुखराम खजी माई मेहताने निम्मरूपसे लिखा है:-मिथ्याष्टिको विपरीतभावसे आचरण करते हुए भी कोई रोक सकनेवाला नहीं, अर्थात् मिथ्याइटिको कोई भय नहीं।-अनुवादक -