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श्रीमद् राजचन्द्र
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३, 'हमको आत्मज्ञान है । आत्माको भ्रान्ति होती ही नहीं, आत्मा कर्ता भी नहीं, और भोका भी नहीं, इसलिये वह कुछ भी नहीं इस प्रकार बोलनेवाले 'शुष्क अध्यात्मी' शून्य ज्ञानी होकर अनाचार सेवन करते हुए रुकते नहीं।
इस तरह हालमें तीन प्रकारके जीव देखनेमें आते हैं। जीवको जो कुछ करना है, वह आत्माके उपकारके लिये ही करना है-यह बात वे भूल गये हैं । हालमें जैनोंमें चौरासीसे सौ गच्छ हो गये हैं । उन सबमें कदाग्रह हो गया है, फिर भी वे सब कहते हैं कि 'जैनधर्म हमारा है'।
'पडिकमामि, निंदामि' आदि पाठका लोकमें, वर्तमानमें ऐसा अर्थ हो गया मालूम होता है कि 'मैं आत्माको विस्मरण करता हूँ'। अर्थात् जिसका अर्थ-उपकार-करना है, उसीको-आत्माको ही–विस्मरण कर दिया है। जैसे बारात चढ़ गई हो, और उसमें तरह तरहके वैभव वगैरह सब कुछ हों, परन्तु यदि एक वर न हो तो बारात शोभित नहीं होती, वर हो तो ही शोभित होती है; उसी तरह क्रिया वैराग्य आदि, यदि आत्माका ज्ञान हो तो ही शोभाको प्राप्त होते हैं, नहीं तो नहीं होते । जैनोंमें हालमें आत्माकी विस्मृति हो गई है।
सूत्र, चौदह पूर्वोका ज्ञान, मुनिपना, श्रावकपना, हजारों तरहके सदाचरण, तपश्चर्या आदि जो जो साधन, जो जो मेहनत, जो जो पुरुषार्थ कहे हैं वे सब एक आत्माको पहिचाननेके लिये हैं । वह प्रयत्न यदि आत्माको पहिचाननेके लिये-खोज निकालनेके लिये-आत्माके लिये हो तो सफल है, नहीं तो निष्फल है। यधपि उससे बाह्य फल होता है, परन्तु चार गतियोंका नाश होता नहीं। जीवको सत्पुरुषका योग मिले, और लक्ष हो तो वह जीव सहजमें ही योग्य हो जाय, और बादमें यदि सद्गुरुकी आस्था हो तो सम्यक्त्व उत्पन्न हो।
शम-क्रोध आदिका कृश पड़ जाना। संवेग मोक्षमार्गके सिवाय अन्य किसी इच्छाका न होना। निर्वेद-संसारसे थक जाना—संसारसे अटक जाना । आस्था-सच्चे गुरुकी-सद्गुरुकी-आस्था होना। अनुकंपा-सब प्राणियोंपर समभाव रखना-निर्वैर बुद्धि रखना ।
ये गुण समकिती जीवमें स्वाभाविक होते हैं । प्रथम सच्चे पुरुषकी पहिचान हो तो बादमें ये चार गुण आते हैं । वेदान्तमें विचार करनेके लिये षट् संपत्तियों बताई है। विवेक वैराग्य आदि सद्गुण प्राप्त होनेके बाद जीव योग्य-मुमुक्षु-कहा जाता है ।
समकित जो है वह देशचारित्र है-एक देशसे केवलज्ञान है। शास्त्रमें इस कालमें मोक्षका सर्वथा निषेध नहीं। जैसे रेलगावीके रास्तेसे इष्ट मार्गपर जल्दी पहुँच जाते हैं और पैदलके ग्रस्ते देरमें पहुँचते है, उसी तरह इस कालमें मोक्षका रास्ता पैदलके रास्तेके समान हो, और इससे वहाँ न पाँच सकें, यह कोई बात नहीं है। जल्दी चलें तो जल्दी पहुँच जॉय-रास्ता कुछ बंद नहीं है। इसी तरह मोक्षमार्ग है, उसका नाश नहीं । अज्ञानी अकल्याणके मार्गमें कल्याण मान स्वच्छंद कल्पना कर, जीवोंका पार होना बंद करा देता है । अज्ञानीके रागी भोलेभाले जीव भवानीके कहे अनुसार चकते.