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श्रीमद् राचजन्द्र
[पत्र ५९.
शब्दफे ही अर्थमें लिखा है। ज्ञानीके वचनकी परीक्षा यदि सब जीवोंको सुलभ होती तो निर्वाण भी सुलभ ही हो जाता।
३. जिनागममें ज्ञानके मति श्रुत आदि पाँच भेद कहे हैं। वे ज्ञानके भेद सच्चे हैं-उपमावाचक नहीं हैं । अवधि मनःपर्यव आदि ज्ञान वर्तमान कालमें व्यवच्छेद सरीखे मालूम होते हैं; उसके ऊपरसे उन ज्ञानोंको उपमावाचक समझना योग्य नहीं है । ये ज्ञान मनुष्य-जीवोंको चारित्र पर्यायके विशुद्ध तारतम्यसे उत्पन्न होते हैं। वर्तमान कालमें वह विशुद्ध तारतम्य प्राप्त होना कठिन है; क्योंकि कालका प्रत्यक्ष स्वरूप चारित्रमोहनीय आदि प्रकृतियोंके विशेष बलसहित प्रवृत्ति करता हुआ देखनेमें आता है।
सामान्य आत्मचारित्र भी किसी किसी जीवमें ही रहना संभव है। ऐसे कालमें उस ज्ञानीकी लब्धि व्यवच्छेद जैसी हो जाय तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इससे उस ज्ञानको उपमावाचक समझना योग्य नहीं। आत्मस्वरूपका विचार करते हुए तो उस ज्ञानकी कुछ भी असंभवता दिखाई नहीं देती। जब सभी ज्ञानोंकी स्थितिका क्षेत्र आत्मा है, तो फिर अवधि मनःपर्यव आदि ज्ञानका क्षेत्र आत्मा हो तो इसमें संशय करना कैसे उचित है ? यद्यपि शास्त्रके यथास्थित परमार्थसे अज्ञ-जीव जिस प्रकारसे व्याख्या करते हैं, वह व्याख्या विरोधयुक्त हो सकती है, किन्तु परमार्थसे उस ज्ञानका होना संभव है।
जिनागममें उसकी जिस प्रकारके आशयसे व्याख्या कही हो वह व्याख्या, और अज्ञानी जीव आशयके बिना जाने ही जो व्याख्या करे, उन दोनोंमें महान् भेद हो तो इसमें आश्चर्य नहीं; और उस भेदके कारण उस ज्ञानके विषयमें संदेह होना योग्य है । परन्तु आत्म-दृष्टिसे देखनेसे वह संदेहक स्थान नहीं है।
४. कालका सूक्ष्मसे सूक्ष्म विभाग 'समय' है। रूपी पदार्थका सूक्ष्मसे सूक्ष्म विभाग 'परमाणु' है, और अरूपी पदार्थका सूक्ष्मसे सूक्ष्म विभाग 'प्रदेश' है। ये तीनों हा ऐसे सूक्ष्म हैं कि अत्यंत निर्मल ज्ञानकी स्थिति ही उनके स्वरूपको ग्रहण कर सकती है । सामान्यरूपसे संसारी जीवोंका उपयोग असंख्यात समयवर्ती है; उस उपयोगमें साक्षात्रूपसे एक समयका ज्ञान संभव नहीं। यदि वह उपयोग एक-समयवर्ती और शुद्र हो तो उसमें साक्षात्रूपस समयका ज्ञान हो सकता है । उस उपयोगका एकसमयवर्तित्व कषाय आदिके अभावसे होता है। क्योंकि कषाय आदिके योगसे उपयोग मूढ़ता आदिधारण करता है, तथा असंख्यात समयवर्तित्वको प्राप्त करता है । उस कषाय आदिके अभावसे उपयोगका एक समयवर्तित्व होता है । अर्थात् कषाय आदिके संबंधसे उसे असंख्यात समयमेंसे एक एक समयको अलग करनेकी सामर्थ्य नहीं थी, उस कषाय आदिके अभावसे वह एक एक समयको अलग करके अवगाहन करता है। उपयोगका एक-समयवर्तित्व कषायरहितपना होनेके बाद ही होता है । इसलिये एक समयका, एक परमाणुका और एक प्रदेशका जिसे ज्ञान हो उसे केवलज्ञान प्रगट होता है, ऐसा जो कहा है, वह सत्य है। कषायरहितपनेके बिना केवलज्ञानका होना संभव नहीं है, और . कषायरहितपनेके बिना उपयोग एक समयको साक्षातरूपसे ग्रहण नहीं कर सकता। इमलिये जब वह एक समयको प्रहण करे उस समय अत्यंत कषायरहितपना होना चाहिये; और जहाँ अत्यंत कषायका अभाव हो वहीं केवलज्ञान होता है। इसलिये यह कहा है कि एक समय, एक परमाणु और एक प्रदेशका जिसे अनुभव हो उसे