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पत्र ६१५,६१६,६१७,६१८,६१९,]
विविध पत्र मादि संग्रह-२९याँ वर्ष
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९. मध्यम-परिणामवाली वस्तुकी नित्यता किस तरह संभव है ! १०. शुद्ध चैतनमें अनेककी संख्याका भेद कैसे घटित होता है !
सामान्य चेतन.
सामान्य चैतन्य. विशेष चेतन.
विशेष चैतन्य. निर्विशेष चेतन.
( चैतन्य.) स्वाभाविक अनेक आत्मा ( जीव )-निर्ग्रन्थ. सोपाधिक अनेक आत्मा (जीव)-वेदान्त.
६१६ चक्षु अप्राप्यकारी. मन अप्राप्यकारी. चेतनका बाह्य आगमन ( गमन न होना ).
६१७ ज्ञानी-पुरुषोंको समय समयमें अनंत संयम-परिणाम वृद्धिंगत होते हैं, ऐसा जो सर्वज्ञने कहा है वह सत्य है । वह संयम विचारकी तीक्ष्ण परिणतिसे तथा ब्रह्मरसके प्रति स्थिरता करनेसे उत्पन्न होता है।
श्रीतीर्थकर आत्माको संकोच-विकासका भाजन योगदशामें मानते हैं, यह सिद्धांत विशेषरूपसे विचारणीय है।
६१९ बम्बई, आषाढ़ सुदी ४ भौम. १९५२ जंगेमनी जुक्ति तो सर्वे जाणिये, समीप रहे पण शरीरनो नहीं संग जो एकाते वसतुं रे, एकज आसने, भूल पडे तो पडे भजनमा भंग जो ।
___ ओघवजी अबळा ते साधन शुं करे?
१ जंगम (शिवलिंगके पूजनेवाले साधुओंका वर्ग ) साधुओंकी दलीलको तो सब जानते हैं। संसर्गमें रहनेपर भी उन्हें शरीरका संग नहीं रहता । परन्तु बात तो यह है कि एकांतमें एक ही आसनपर बैठना चाहिये, क्योंकि कोई भूल हो जाय तो भजनमें बाधा होना संभव है।हे ओधवजी, मैं अबला उन कौनसे साधनोंको स्वीकार कर्क