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श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र ६४०
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रालज, भाद्रपद १९५२ बौद्ध, नैयायिक, सांख्य, जैन और मीमांसा ये पाँच आस्तिक अर्थात् बंध-मोक्ष आदि भावको स्वीकार करनेवाले दर्शन हैं । नैयायिकोंके अभिप्रायके समान ही वैशेषिकोंका अभिप्राय है; सांख्यके समान ही योगका अभिप्राय है- इनमें थोड़ा ही भेद है, इससे उन दर्शनोंका अलग विचार नहीं किया । मीमांसाके पूर्व और उत्तर इस तरह दो भेद हैं । पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसामें विशेष विचार-भेद है, फिर भी मीमांसा शब्दसे दोनोंका बोध होता है। इस कारण यहाँ मीमांसा शब्दसे दोनों ही समझने चाहिये । पूर्वमीमांसा जैमिनीय और उत्तरमीमांसा वेदान्त नामसे भी प्रसिद्ध हैं।
बौद्ध और जैनदर्शनके सिवाय बाकीके दर्शन वेदको मुख्य मानकर ही चलते हैं, इसलिये वे वेदाश्रित दर्शन हैं; और वे वेदार्थको प्रकाशित कर अपने दर्शनके स्थापित करनेका प्रयत्न करते हैं । बौद्ध और जैनदर्शन वेदके आश्रित नहीं—वे स्वतंत्र दर्शन हैं।
आत्मा आदि पदार्थको न स्वीकार करनेवाला चार्वाक नामका छठा दर्शन है । बौद्धदर्शनके मुख्य चार भेद हैं
१ सौत्रांतिक, २ माध्यमिक, ३ शून्यवादी और ४ विज्ञानवादी । वे भिन्न भिन्न प्रकारसे भावोंकी व्यवस्था स्वीकार करते हैं।
जैनदर्शनके थोड़े ही प्रकारांतरसे दो भेद हैं:-दिगम्बर और श्वेताम्बर ।
पाँच आस्तिक दर्शन जगत्को अनादि मानते हैं । बौद्ध, सांख्य, जैन और पूर्वमीमांसाके मतानुसार सृष्टिका कर्ता कोई ईश्वर नहीं है।
नैयायिकोंके अनुसार ईश्वर तटस्थरूपसे कर्ता है । वेदान्तके मतानुसार आत्मामें जगत् विवर्तरूप अर्थात् कल्पितरूपसे भासित होता है, और उस रीतिसे उसने ईश्वरको भी कल्पितरूपसे ही कर्ता स्वीकार किया है।
योगके अभिप्रायके अनुसार ईश्वर नियंतारूपसे पुरुषविशेष है।
बौद्ध मतानुसार त्रिकाल और वस्तुस्वरूप आत्मा नहीं है-क्षाणिक है । शून्यवादी बौद्धके मतानुसार वह विज्ञानमात्र है; और विज्ञानवादी बौद्धके मतके अनुसार दुःख आदि तत्त्व हैं। उनमें विज्ञानस्कंध क्षणिकरूपसे आत्मा है।
नैयायिकोंके मतके अनुसार सर्वव्यापक असंख्य जीव हैं । ईश्वर भी सर्वव्यापक है । आत्मा आदिको मनके सान्निध्यसे ज्ञान उत्पन्न होता है ।
सांख्यके मतानुसार सर्वव्यापक असंख्य आत्माय है। वे नित्य अपरिणामी और चिन्मात्र स्वरूप हैं।
१ शून्यवादी बौद्ध ही मध्यम-मार्गक सिद्धांतको स्वीकार करनेके कारण माध्यमिक भी कहे जाते हैं । इसलिये माध्यमिक और शून्यवादी ये दोनों एक ही है, भिन्न भिन नहीं । बौददर्शनके मुख्य चार भेद निमरूपसे हैं:-सोत्रातिक, वैभाषिक, शून्यवादी और विज्ञानवादी।
-अनुवादक. २ शून्यवादी बौद्धोंके अनुसार सब कुछ शून्य है, वे विज्ञानमात्रको स्वीकार नहीं करते । विज्ञानवादी बौदही विज्ञानमात्रको स्वीकार करते हैं।
-अनुवादक.