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श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र ६३०, ६३१ .
६३० . काविठा, श्रावण वदी १९५२ शरीर किसका है ! मोहका है । इसलिये असंग भावना रखना योग्य है ।
६३१
रालज, श्रावण वदी १३ शनि. १९५२
१. प्रश्नः-अमुक पदार्थके गमनागमन आदिके प्रसंगमें धर्मास्तिकाय आदिके अमुक प्रदेशमें ही क्रिया होती है; और यदि इस तरह हो तो उनमें विभाग होना संभव है, जिससे वे भी कालके समयकी तरह अस्तिकाय नहीं कहे जा सकते !
उत्तरः-जिस तरह धर्मास्तिकाय आदिके सर्व प्रदेश एक समयमें वर्तमान है, अर्थात् विद्यमान हैं, उसी तरह कालके सर्व समय कुछ एक समयमें विद्यमान नहीं होते, और फिर द्रव्यकी वर्तना पर्यायके सिवाय कालका कोई जुदा द्रव्यत्व नहीं है, जिससे उसका अस्तिकाय होना संभव हो । अमुक प्रदेशमें धर्मास्तिकाय आदिमें किया हो, और अमुक प्रदेशमें न हो, इससे कुछ उसके अस्तिकाय होनेका भंग नहीं होता । वह द्रव्य केवल एक प्रदेशात्मक हो और उसमें समूहात्मक होनेकी योग्यता न हो, तो ही उसके अस्तिकाय होनेका भंग हो सकता है, अर्थात् तो ही वह अस्तिकाय नहीं कहा जा सकता । परमाणु एक प्रदेशात्मक है, तो भी उस तरहके दूसरे परमाणु मिलकर वह समूहात्मकरूप होता है, इसलिये वह अस्तिकाय ( पुद्गलास्तिकाय ) कहा जाता है । तथा एक परमाणुमें भी अनन्त पर्यायात्मकपना है, और कालके एक समयमें कुछ अनंत पर्यायात्मकपना नहीं है, क्योंकि वह स्वयं ही वर्तमान एक पर्यायरूप है । एक पर्यायरूप होनेसे वह द्रव्यरूप नहीं ठहरता, तो फिर उसे अस्तिकायरूप माननेका विकल्प करना भी संभव नहीं है।
२. मूल अप्कायिक जीवोंका स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म होनेसे, सामान्य ज्ञानसे उसका विशेषरूपसे ज्ञान होना कठिन है, तो भी षड्दर्शनसमुच्चय प्रन्थमें, जो हालमें ही प्रसिद्ध हुआ है, १४१ से १४३ पृष्ठतक उसका कुछ स्वरूप समझाया गया है। उसका विचारना हो सके तो विचार करना ।
३. अग्नि अथवा दूसरे बलवान शस्त्रसे अप्कायिक मूल जीवोंका नाश हो जाना संभव है, ऐसा समझमें आता है । यहाँसे भाप आदिरूप होकर जो पानी ऊपर आकाशमें बादलरूपसे एकत्रित होता है, वह भाप आदिरूप होनेसे अचित्त मालूम होता है, परन्तु बादलरूप होनेसे वह फिरसे सचित्त हो जाता है । वर्षा आदिरूपसे जमीनपर पड़नेपर भी वह सचित्त हो जाता है । मिट्टी आदिके साथ मिल. नेसे भी वह सचित्त रह सकता है । सामान्यरूपसे मिट्टी अग्निके समान बेलवान. शस्त्र नहीं है, इसलिये वैसा हो तो भी उसका सचित्त रहना संभव है। . । ४. बीज जबतक बोये जानेसे उगनेकी योग्यता रखता है, तबतक निर्जीव नहीं होता, वह सजीव ही कहा जाता है । अमुक अवधि के पश्चात् अर्थात् सामान्यरूपसे बोज (अम आदिका) तीन ' वर्षतक सजीव रह सकता है । इसके बीचमें उसमेंसे जीव च्युत भी हो सकता है, परन्तु उस अवधिक