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पत्र ५०३]
विविध पत्र आदि संग्रह-२८वाँ वर्ष असत्संगके समागमका विशेष घिराव है, और यह जीव उससे अनादिकालसे हीनसत्त्व हो जानेके कारण उससे अवकाश प्राप्त करनेके लिये, अथवा उसकी निवृत्ति करनेके लिए जैसे बने वैसे यदि सत्संगका आश्रय करे तो वह किसी तरह पुरुषार्थ-योग्य होकर विचार-दशाको प्राप्त कर सकता है। ___जिस प्रकारसे इस संसारकी अनित्यता असारता अत्यंतरूपसे भासित हो, उस प्रकारसे आत्मविचार उत्पन्न होता है।
. इस समय इस उपाधि-कार्यसे छूटनेके लिये विशेष अति विशेष पीड़ा रहा करती है, और यदि इससे छूटे बिना जो कुछ भी काल व्यतीत होता है, तो वह इस जीवकी शिथिलता ही है, ऐसा लगता है, अथवा ऐसा निश्चय रहा करता है।
जनक आदि जो उपाधिमें रहते हुए भी आत्मस्वभावसे रहते थे, उनकी ऐसे आलंबनके प्रति कभी भी बुद्धि न होती थी। 'श्रीजिन जैसे जन्नत्यागी भी जिसे छोड़कर चल दिये, ऐसे भयके हेतुरूप उपाधि-योगकी निवृत्तिको करते करते यदि यह पामर जीव काल व्यतीत करेगा तो अश्रेय होगा, यह भय जीवके उपयोगमें रहता है, क्योंकि ऐसा ही कर्तव्य है ।
जो राग-द्वेष आदि परिणाम अज्ञानके बिना संभवित नहीं होते, उन राग-द्वेप आदि परिणामोंके होनेपर, जीवन्मुक्तिको सर्वथा मानकर, जीव जीवन्मुक्त दशाकी आसातना करता है-इस प्रकार प्रवृत्ति करता है। उन राग-द्वेष परिणामोंका सर्वथा क्षय करना ही कर्तव्य है।
जहाँ अत्यंत ज्ञान हो, वहाँ अत्यंत त्याग होता है । अत्यंत त्यागके प्रगट हुए बिना अत्यंत ज्ञान नहीं होता, ऐसा श्रीतीर्थकरने स्वीकार किया है।
आत्म-परिणामपूर्वक जितना अन्य पदार्थका तादात्म्य-अध्यास-निवृत्त किया जाय, उसे श्रीजिनने त्याग कहा है।
उस तादात्म्य-अध्यास-निवृत्तिरूप त्याग होनेके लिये इस बाह्य प्रसंगका त्याग भी उपकारक है-कार्यकारी है । बाह्य प्रसंगके त्यागके लिये अंताग नहीं कहा-ऐसा होनेपर भी इस जीवको अंतागके लिये बाह्य प्रसंगकी निवृत्तिको कुछ भी उपकारक मानना योग्य है।
हम नित्य छूटनेका ही विचार करते हैं, और जैसे बने जिससे वह कार्य तुरत ही निबंट जाय वैसी जाप जपा करते हैं । यद्यपि ऐसा लगता है कि वह विचार और जाप अभी तथारूप नहीं हैशिथिल है, इसलिये अत्यंत विचार और उप्रतासे उस जापके आराधन करनेका अल्पकालमें संयोग जुटाना योग्य है-ऐसा रहा करता है।
प्रसंगपूर्वक कुछ परस्परके संबंध जैसे वचन इस पत्रमें लिखे हैं। उनके विचारमें स्फुरित होनेसे, उन्हें स्व-विचार-बलकी वृद्धिके लिये और तुम्हारे बाँचने-विचारनेके लिये लिखा है।
(२) जीव, प्रदेश, पर्याय, संख्यात, असंख्यात, अनंत आदिके विषयमें तथा रसकी व्यापक ताके विषयमें क्रमपूर्वक समझना योग्य होगा।