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पत्र ५२८, ५२९, ५३०]
विविध पत्र मादि संग्रह-२८वाँ वर्ष
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१. सांख्यदर्शन कहता है कि बुद्धि जड़ है । पातंजल और वेदान्तदर्शन भी ऐसा ही कहते हैं । जिनदर्शन कहता है कि बुद्धि चेतन है।
२. वेदान्तदर्शन कहता है कि आत्मा एक ही है । जिनदर्शन कहता है कि आत्मा अनंत हैं। जाति एक है । सांख्यदर्शन भी ऐसा ही कहता है । पातंजलदर्शन भी ऐसा ही कहता है।
३. वेदान्तदर्शन कहता है कि यह समस्त विश्व वंध्याके पुत्रके समान है, जिनदर्शन कहता है कि यह समस्त विश्व शाश्वत है ।
४. पातंजलदर्शन कहता है कि नित्य मुक्त ईश्वर एक ही होना चाहिये । सांख्यदर्शन इस बातका निषेध करता है । जिनदर्शन भी निषेध करता है ।
. ५२९ बम्बई, आषाढ़ वदी ११ गुरु. १९५१ जिस विचारवान पुरुषकी दृष्टिमें संसारका स्वरूप नित्यप्रति क्लेशस्वरूप भासमान होता हो, सांसारिक भोगोपभोगमें जिसे नीरसता जैसी प्रवृत्ति होती हो, उस विचारवानको दूसरी तरफ लोकव्यवहार आदि, व्यापार आदिका उदय रहता हो, तो वह उदय-प्रतिबंध इन्द्रियके सुखके लिये नहीं, किन्तु आत्महितार्थ दूर करनेके लिये हो, तो उसे दूर कर सकनेका क्या उपाय करना चाहिये ? इस संबंधमें कुछ कहना हो तो कहना ।
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बम्बई, आषाढ़ वदी १४ रवि. १९५१
जिस प्रकारसे सहज ही बन जाय, उसे करनेके लिये परिणति रहा करती है, अथवा अन्तमें यदि कोई उपाय न चले तो बलवान कारणको जिससे बाधा न हो वैसी प्रवृत्ति होती है। बहुत समयके व्यावहारिक प्रसंगकी अरुचिके कारण यदि थोड़े समय भी निवृत्तिसे किसी तथारूप क्षेत्रमें रहा जाय तो अच्छा, ऐसा चित्तमें रहा करता था । तथा यहाँ अधिक समय रहनेके कारण, जो देहके जन्मके निमित्त कारण हैं, ऐसे माता पिता आदिके वचनके लिये, उनके चित्तकी प्रियताके अक्षोभके लिये, तथा कुछ कुछ दूसरोंके चित्तकी अनुप्रेक्षाके लिये भी थोड़े दिनके वास्ते ववाणीआ जानेका विचार उत्पन्न हुआ था। उन दोनों बातोंके लिये कभी संयोग मिले तो अच्छा, ऐसा विचार करनेसे कुछ यथायोग्य समाधान न होता था। उसके लिये विचारकी सहज उद्भूत विशेषतासे हालमें जो कुछ विचारकी अल्प स्थिरता हुई, उसे तुम्हें बताया था । सब प्रकारके असंग-लक्षके विचारको, यहाँसे अप्रसंग समझकर, दूर रखकर अल्पकालकी अल्प असंगताका हालमें कुछ विचार रक्खा है, वह भी सहज स्वभावसे उदयानुसार ही हुआ है । श्रावण वदी ११ से भाद्रपद सुदी १० के लगभग तक किसी निवृत्ति क्षेत्रमें रहना हो तो वैसे, यथाशक्ति उदयको उपशम जैसा रखकर प्रवृत्ति करना चाहिये; यद्यपि विशेष निवृत्ति तो उदयका स्वरूप देखनेसे प्राप्त होनी कठिन जान पड़ती है।