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पत्र ५६० ]
विविध पत्र आदि संग्रह-२८वाँ वर्ष
- जिन पुरुषोंकी अंतर्मुखदृष्टि हो गई है, उन पुरुषोंको भी श्रीवीतरागने सतत जागृतिरूप ही उपदेश किया है; क्योंकि अनंतकालके अध्यासयुक्त पदार्थोका जो संग रहता है, वह न जाने किस दृष्टिको आकर्षित कर ले, यह भय रखना उचित है।
जब ऐसी भूमिकामें भी इस प्रकार उपदेश दिया गया है तो फिर जिसकी विचार-दशा ह ऐसे मुमुक्षु जीवको सतत जागृति रखना योग्य है, ऐसा न कहा गया हो, तो भी यह स्पष्ट समझा जा सकता है कि मुमुक्षु जीवको जिस जिस प्रकारसे पर-अध्यास होने योग्य पदार्थ आदिका त्याग हो, उस उस प्रकारसे अवश्य करना उचित है । यद्यपि आरंभ परिग्रहका त्याग स्थूल दिखाई देता है, फिर भी अंतर्मुखवृत्तिका हेतु होनेसे बारम्बार उसके त्यागका ही उपदेश किया है।