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पत्र ५३७] विविध पत्र मादि संग्रह-२८वों वर्ष
४६६ भान होता है, उसी तरह जातिस्मरण ज्ञानवालेको भी पूर्वभवका भान होता है। कदाचित् यहाँ यह प्रश्न होगा कि ' पूर्वभवमें अनुभव किये हुए देह आदिका जैसा ऊपर कहा है वैसा भान होना संभव है-इस बातको यदि याथातथ्य मानें तो भी पूर्वभवमें अनुभूत देह आदि अथवा कोई देवलोक आदि निवास स्थान जो अनुभव किये हों, उस अनुभवकी स्मृति हुई है, और वह अनुभव याथातथ्य हुआ है, यह किस आधारसे समझना चाहिये !' इस प्रश्नका समाधान इस तरह है:-अमुक अमुक चेष्टा, लिंग तथा परिणाम आदिसे अपने आपको उसका स्पष्ट भान होता है, किन्तु दूसरे किसी जीवको उसकी प्रतीति होनेके लिये तो कोई नियम नहीं है । कचित् अमुक देशमें अमुक गाँवमें अमुक घरमें पूर्वमें देह धारण किया हो, और उसके चिह दूसरे जीवको बतानेसे, उस देश आदिकी अथवा उसके निशान आदिकी कुछ भी विधमानता हो, तो दूसरे जीवको भी प्रतीतिका कारण होना संभव है। अथवा जातिस्मरण ज्ञानवालेकी अपेक्षा जिसका ज्ञान विशेष है, उसका उसे जानना संभव है । तथा जिसे जातिस्मरण ज्ञान है, उसकी प्रकृति आदिको जाननेवाला ऐसा कोई विचारवान पुरुष भी जान सकता है कि इस पुरुषको किसी वैसे ज्ञानका होना संभव है, या जातिस्मरण होना संभव है; अथवा जिसे जातिस्मरण ज्ञान है, कोई जीव उस पुरुषके पूर्वभवमें संबंधमें आया हो-विशेषरूपसे आया हो, उसे उस संबंधके बतानेसे यदि कुछ भी स्मृति हो तो भी दूसरे जीवको प्रतीति आना संभव है।
दूसरा प्रश्नः-जीव प्रतिसमय मरता रहता है, यह किस तरह समझना चाहिये ?
उत्तर:-जिस प्रकार आत्माको स्थूल देहका वियोग होता है-जिसे मरण कहा जाता हैउसी तरह स्थूल देहकी आयु आदि सूक्ष्म पर्यायका भी प्रतिसमय हानि-परिणाम होनेसे वियोग हो रहा है, उससे वह प्रतिसमय मरण कहा जाता है । यह मरण व्यवहारनयसे कहा जाता है । निश्चयनयसे तो आत्माके स्वाभाविक ज्ञान दर्शन आदि गुण-पर्यायकी, विभाव परिणामके कारण, हानि, हुआ करती है, और वह हानि आत्माके नित्यता आदि स्वरूपको भी पकड़े रहती है-यह प्रतिसमय मरण कहा जाता है।
तीसरा प्रश्नः केवलज्ञानदर्शनमें भूत और भविष्यकालके. पदार्थ वर्तमानकालमें वर्तमानरूपसे ही दिखाई देते हैं, अथवा किसी दूसरी तरह !
उत्तरः-जिस तरह वर्तमानमें वर्तमान पदार्थ दिखाई देते हैं, उसी तरह भूतकालके पदार्थ भूतकालमें जिस स्वरूपसे थे उसी स्वरूपसे वर्तमानकालमें दिखाई देते हैं, और वे पदार्थ भविष्यकालमें जिस स्वरूपसे होंगे उसी स्वरूपसे वर्तमानकालमें दिखाई देते हैं । भूतकालमें जो जो पर्याय पदार्थ, रहती हैं, वे कारणरूपसे वर्तमान पदार्थमें मौजूद हैं, और भविष्यकालमें जो जो पर्याय रहेंगी, उनकी योग्यता वर्तमान पदार्थमें मौजूद है। उस कारणका और योग्यताका ज्ञान वर्तमानकालमें भी केवलज्ञानीको यथार्थ स्वरूपसे हो सकता है । यद्यपि इस प्रश्नके विषयमें बहुतसे विचार बताना योग्य है।