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पत्र ३४७ ] विविध पत्र आदि संग्रह-२५वाँ वर्ष
___ ३२९ कितना कहें, जिस जिस तरह इस राग-दोषका विशेषरूपसे नाश हो उस उस तरह आचरण करना, यही जिनेश्वरदेवकी आज्ञा है।
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बम्बई, आसोज १९४८
जिस पदार्थमेंसे नित्य ही विशेष व्यय होता हो और आय कम हो, तो वह पदार्थ क्रमसे अपनेपनका त्याग कर देता है, अर्थात् नाश हो जाता है-ऐसा विचार रखकर ही इस व्यवसायका प्रसंग रखना चाहिये।
पूर्वमें उपर्जित किया हुआ जो कुछ प्रारब्ध है, उसके वेदन करनेके सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं है, और योग्य भी इसी रीतिसे है, ऐसा समझकर जिस जिस प्रकारसे जो कुछ प्रारब्ध उदयमें आता है, उसे सम परिणामसे वेदन करना ही योग्य है, और इसी कारणसे यह व्यवसाय-प्रसंग योग्य है।
चित्तमें किसी रातिसे उस व्यवसायका कर्त्तव्य नहीं मालूम होनेपर भी, वह व्यवसाय केवल खेदका ही हेतु है, इस प्रकार परमार्थका निश्चय होनेपर भी, प्रारब्धरूप होनेसे सत्संग आदि योगका अप्रधानभावसे वेदन करना पड़ता है । उसका वेदन करनेमें इच्छा-अनिच्छा कुछ भी नहीं है, परन्तु आत्माको इस निष्फल प्रवृत्तिके संबंधको देखकर खेद होता है, और इस विषयमें बारम्बार विचार रहा करता है।
(२) इन्द्रियके विषयरूपी क्षेत्रकी जमीनके जीतनेमें तो आत्मा असमर्थता बताती है, और समस्त पृथ्वीके जीत लेने में समर्थताका विचार करती है, यह कैसा आश्चर्यकारक है !
प्रवृत्तिके कारण आत्मा निवृत्तिका विचार नहीं कर सकती, ऐसा कहना केवल एक बहाना मात्र है । यदि थोड़े समयके लिये भी प्रवृत्ति छोड़कर आत्मा प्रमादरहित होकर हमेशा निवृत्तिका ही विचार किया करे, तो उसका बल प्रवृत्तिमें भी अपना कार्य कर सकता है। क्योंकि हरेक वस्तुका अपने कम-ज्यादा बलके अनुसार ही अपना अपना कार्य करनेका स्वभाव है । जिस तरह मादक पदार्थ दूसरी खुराकके साथ मिलनेसे अपने असली स्वभावके परिणमन करनेको नहीं भूल जाता, उसी तरह ज्ञान भी अपने स्वभावको नहीं भूलता। इसलिये हरेक जीवको प्रमाद रहित होकर, योग्य कालमें निवृत्तिके मार्गका ही निरंतर विचार करना चाहिये ।
(३)
व्रतके संबंध यदि किसी जीवको व्रत लेना हो तो स्पष्टभावसे दूसरेकी साक्षीसे ही लेना चाहिये, उसमें फिर स्वेच्छासे प्रवृत्ति नहीं करना चाहिये । व्रतमें रह सकनेवाली यदि कोई छूट रक्खी हो और किसी कारणविशेषसे यदि उस वस्तुका उपयोग करना पड़ जाय तो वैसा करनेके स्वयं अधिकारी न बनना चाहिये । ज्ञानीकी आज्ञाके अनुसार ही आचरण करना चाहिये नहीं तो उसमें शिथिलता आ जाती है, और व्रतका भंग हो जाता है।
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