________________
४०६
श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र ४४७ गाँधीजीके प्रभोंके उत्तर
(२) राग, द्वेष और अज्ञानका आत्यंतिक अभाव करके जो सहज शुद्ध आत्मस्वरूपमें स्थित हो गया है, वह स्वरूप हमारे स्मरण करनेके, ध्यान करनेके और पानेके योग्य स्थान है ।
(३) सर्वज्ञ-पदका ध्यान करो।
१४७
बम्बई, आसोज वदी ६ शनि. १९५०
सत्पुरुषको नमस्कार आत्मार्थी, गुणग्राही, सत्संग-योग्य भाई श्रीमोहनलालके प्रति श्री डरबन, श्री बम्बईसे लिखित जीवन्मुक्तदशाके इच्छुक रायचन्द्रका आत्मस्मृतिपूर्वक यथायोग्य पहुँचे ।
तुम्हारे लिखे हुए पत्रमें जो आत्मा आदिके विषयमें प्रश्न हैं, और जिन प्रश्नोंके उत्तर जाननेकी तुम्हारे चित्तमें विशेष आतुरता है, उन दोनोंके प्रति मेरा सहज सहज अनुमोदन है । परन्तु जिस समय तुम्हारा वह पत्र मुझे मिला उस समय मेरी चित्तकी स्थिति उसका उत्तर लिख सकने जैसी न थी, और प्रायः वैसा होनेका कारण भी यह था कि उस प्रसंगमें बाह्योपाधिके प्रति विशेष वैराग्य परिणाम प्राप्त हो रहा था। इस कारण उस पत्रका उत्तर लिखने जैसे कार्योंमें भी प्रवृत्ति हो सकना संभव न था। थोड़े समयके पश्चात् उस वैराग्यमेंसे अवकाश लेकर भी तुम्हारे पत्रका उत्तर लिगा, ऐसा विचार किया था । परन्तु पीछेसे वैसा होना भी असंभव हो गया । तुम्हारे पत्रकी पहुँच भी मैंने न लिखी थी, और इस प्रकार उत्तर लिख भेजनेमें जो विलम्ब हुआ, इससे मेरे मनमें खेद हुआ था, और इसमेंका अमुक भाव अबतक भी रहा करता है । जिस अवसरपर विशेष करके यह खेद दुआ, उस अवसरपर यह सुननेमें आया कि तुम्हारा विचार तुरत ही इस देशमें आनेका है। इस कारण कुछ चित्तमें ऐसा आया कि तुम्हें उत्तर लिखने में जो विलम्ब हुआ है वह भी तुम्हारे समागम होनेसे विशेष लाभकारक होगा। क्योंकि लेखद्वारा बहुतसे उत्तरोंका समझाना कठिन था; और तुम्हें पत्रके तुरत ही न मिल सकनेके कारण तुम्हारे चित्तमें जो आतुरता उत्पन्न हुई, वह समागम होनेपर उत्तरको तुरत ही समझ सकनेके लिये एक श्रेष्ठ कारण मानने योग्य था । अब प्रारब्धके उदयसे जब समागम हो तब कुछ भी उस प्रकारकी ज्ञान-वार्ता होनेका प्रसंग आवे, यह आकांक्षा रखकर संक्षेपमें तुम्हारे प्रश्नोंका उत्तर लिखता हूँ । इन प्रश्नोंके उत्तरोंका विचार करनेके लिये निरंतर तत्संबंधी विचाररूप अभ्यासकी आवश्यकता है । वह उत्तर संक्षेपमें लिखा गया है, इस कारण बहतसे संदेहोंकी निवृत्ति होना तो कदाचित् कठिन होगी तो भी मेरे चित्तमें ऐसा रहता है कि मेरे वचनोंमें तुम्हें कुछ भी विशेष विश्वास है, इससे तुम्हें धीरज रह सकेगा, और वह प्रश्नोंके यथायोग्य समाधान होनेका अनुक्रमसे कारणभूत होगा, ऐसा मुझे लगता है । तुम्हारे पत्रमें २५ प्रश्न हैं, उनका उत्तर संक्षेपमें नीचे लिखता :