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पत्र ४२३] विविध पत्र आदि संग्रह-२७वाँ वर्ष
वीतराग पुरुषके समागम बिना, उपासना बिना इस जीवको मुमुक्षुता कैसे उत्पन्न हो ! सम्यग्ज्ञान कहाँसे हो ! सम्यग्दर्शन कहाँसे हो! सम्यक्चारित्र कहाँसे हो ! क्योंकि ये तीनों वस्तुएँ अन्य स्थानमें नहीं होती।
हे मुमुक्षु ! वीतराग पुरुषके अभावके समान यह वर्तमान काल है। वीतराग-पद बारंबार विचार करने योग्य है, उपासना करने योग्य है, और ध्यान करने योग्य है।
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मोहमयी, आषाद सुदी १५ भौम. १९५०
प्रश्न:-भगवान्ने ऐसा प्रतिपादन किया है कि चौदह राजू लोकमें काजलके कुएँकी तरह सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव भरे हुए हैं । ये जीव इस तरहके कहे गये हैं जो जलानेसे जलते नहीं, छेदनेसे छिदते नही और मारनेसे मरते नहीं। उन जीवोंके औदारिक शरीर नहीं होता, क्या इस कारण उनका अग्नि आदिसे व्याघात नहीं होता ! अथवा औदारिक शरीर होनेपर भी क्या उसका अग्नि आदिसे व्याघात नहीं होता ! तथा यदि औदारिक शरीर हो तो फिर उस शरीरका अग्नि आदिसे क्यों व्याघात नहीं होता!
इस प्रश्नको पढ़ा है। विचारके लिये उसका यहाँ संक्षेपमें समाधान लिखा है।
उत्तर:-एक देहको त्यागकर दूसरी देह धारण करते समय जब कोई जीव रास्तेमें रहता है, उस समय अथवा अपर्याप्त अवस्थामें उसे केवल तैजस और कर्माण ये दो ही शरीर होते हैं। बाकीकी सब अवस्थाओंमें अर्थात् कर्मसहित स्थितिमें सब जीवोंको श्रीजिनभगवान्ने कर्माण तैजस, तथा औदारिक अथवा वैक्रियक इन दो शरीरोंमेंसे किसी एक शरीरकी संभावना बताई है। केवल मार्गमें रहनेवाले जीवको ही कार्माण और तैजस ये दो शरीर होते हैं; अथवा जबतक जीवकी अपर्याप्त स्थिति है, तबतक उसका कार्माण और तेजस शरीरसे निर्वाह हो सकता है, परन्तु पर्याप्त स्थितिमें उसके नियमसे तीसरा शरीर होना संभव है । आहार आदिके ग्रहण करनेरूप ठीक ठीक सामर्थ्यका होना, यह पर्याप्त स्थितिका लक्षण है; और इस आहार आदिका जो कुछ भी ग्रहण करना है, वह तीसरे शरीरका प्रारंभ है; अर्थात् वहींसे तीसरा शरीर शुरू हुआ समझना चाहिये । भगवान्ने जो सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव कहे हैं, उनका अग्नि आदिसे व्याघात नहीं होता । उन जीवोंके पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय होनेसे यद्यपि उनके तीन शरीर होते हैं, परन्तु उनके जो तीसरा औदारिक शरीर है, वह इतनी सूक्ष्म अवगाहनायुक्त है कि उसे शस्त्र आदिका स्पर्श नहीं हो सकता । अनि आदिका जो स्थूलत्व है, और एकेन्द्रिय शरीरका जो सूक्ष्मत्व है, वह इस प्रकारका है कि जिसे एक दूसरेका संबंध नहीं हो सकता। अर्थात् यदि ऐसा कहें कि यदि उनका साधारण संबंध हो, तो भी अग्नि शस्त्र आदिमें जो अवकाश है, उस अवकाशमेंसे उन एकेन्द्रिय जीवोंका सुगमतासे गमनागमन हो सकनेके कारण, उन जीवोंका नाश हो सके, अथवा उनका व्याघात हो, अथवा उस प्रकारका उन्हें अग्नि